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श्री जिनचन्द्रसूरि अकबर - प्रतिबोध रास
सुन्दर सकल सोभागी, खरतर गच्छ गुरु रागी ।
बड़े भागी बलवन्त, लघु बंधव जसवन्त ॥ ३० ॥ श्रेणिक अभय कुमार, तासु तणइ अवतार |
मुहतो मतिवन्त कहिय, तसु गुण पार न लहियइ ।। ३१ । पिसुण तणइ पग फेर, मुंकी वीकम नयर ।
लाहोरि जईय उच्छाहि, सेव्यो श्री पातिशाह ॥ ३२ ॥ मोटर भूपति अकबर, कउण करइ तसु सरभर ।
चिहुं खण्ड वरतिय आण, सेवइ नर राय रांण ॥ ३३ ॥ अरि गंजण भंजन सिंह, महीयलि जसु जस सीह ।
धरम करम गुण जांण, साचउ ए सुरताण ॥ ३४ ॥ बुद्धि महोदधि जाणी, श्रीजी निज मनि आणी ।
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कर्मचन्द तेड़ीय पासि, राखइ मन उलासि ॥ ३५ ॥ मान महुत तसु दोघउ, मन्त्रि सिरोमणि कीधउ ।
कर्मचन्द शाहि सुं प्रीत, चालइ उत्तम रोति ॥ ३६ ॥ मीर मलक खोजा खांन, दीजइ राय राणा मांन ।
मिलीया सकल दीवांणि, साहिब बोलइ मुख वाणि ।। ३७ ।। मुंहता काहि तुझ मर्म, देव कवण गुरू धर्म |
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भंजर मुझ मन भ्रन्ति, निज मनि करिय एकन्ति ।। ३८ ।। राग सोरठी दोहा
वलत मुहत विनव, सुणि साहब मुझ बात ।
देव दया पर जीव ने, ते अरिहंत विख्यात ॥ ३६ ॥
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