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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह मेली सहुसंघ गुरु साथि, परघल खरचइ निजआथि । ___ चाल्या भेटण गिरिराज, संघपति सोमजी सिरताज ॥ २० ॥
राग मल्हार दोहा पूर्व पच्छिम उत्तरइ, दक्षिण चहुं दिसि जाणि ।
संघ चालिउ शैज भणी, प्रगटी महीयलि वांणि ।। २१ ॥ 'विक्रमपुर मण्डोवरउ, सिन्धु जेसलमेर ।
सीरोही जालोर नउ, सोरठि चांपानेर ॥ २२ ॥ संघ अनेक तिहां आविया, भेटण विमल गिरिन्द ।
लोकतणी संख्या नहीं, साथि गुरु जिणचन्द ॥ २३ ॥ 'चोर चरड़ अरि भय हणो, वंदी आदि जिणंद ।
कुशले निज घर आविया, सानिध श्री जिनचंद ॥ २४ ।। पूज्य चउमासो सूरतइ, पहुंता वर्षा कालि ।
संघ सकल हर्षित थयउ, फलो मनोरथ मालि ।। २५ ।। वली चौमासो गुरु कीयउ, अहमदावादि रसाल ।
__ अवर चौमासो पाटणे, कीधो मुनि भूपाल ॥२६॥ अनुक्रमि आव्या खम्भपुरि, भेटण पास जिणंद । संघ करइ आदर घणउ, करउ चउमासि मुणिंद ।। २७ ।।
राग धन्याश्रो० ढालउलालानी हिव विक्रमपुर ठाम, राजा रायसिंह नाम ।
कर्मचन्द तसु परधान, साचउ बुद्धिनिधान ।। २८ ।। ओस महा वंश हीर, वच्छावत बड़ वीर ।
दानइ करण समान, तेजि तपय जिम भांण ॥ २६ ।।
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