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श्रीजिनचन्द्रसूरि अकबर - प्रतिबोध रास
चालि राग सामेरी
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उच्छव अधिक विख्यात, महीयलि मोटा अवदात | पाठक वाचक परिवार, जूथाधिपति जयकार इणि अवसर वातज मोटी, मत जाणउ को नर खोटी । कुमति जे कीधउ ग्रन्थ, ते दुरगति केरउ पंथ ॥ ११ ॥ हठवाद घणा तिण कीधा, संघ पाटण नइ जसलोधा ।
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कुमति नउ मोड़िउ मांन, जग मांहि बधारित वांन ॥ १२ ॥ पेखी हरि सारंग त्रासर, गुरु नामइ कुमति नासइ ।
पूज्य पाटण जय पद पायउ, मोतीड़े नारि बधायउ || १३ || गामागर पुरि विहरंता, गुरू अहमदाबाद पहुंता ।
तिहां संघ चतुर्विध वंदइ, गुरु दरसण करि चिर नंदइ || १४ || उच्छव आडम्बर कीधड, धन खरची लाहउ लीघउ ।
गुरु जांणी लाभ अनन्त, चउमासि करइ गुणवन्त ।। १५ ।। चउमासि तणइ परभाति, सुह गुरु पहुंता खंभाति ।
चउमासि करइ गुरुराज, श्री संघ तणइ हितकाज ॥ १६ ॥ खरतर गच्छ गयण दिणंद, अभयादिम देव मुणिंद ।
प्रगट्या जिण थंभण पास, जागइ अतिसइ जसवास ॥ १७ ॥ श्री जिनचन्द सूरिन्द, भेटचउ प्रभु पास जिणन्द |
श्री जिन कुशल सुरीस, वंदया मन धरि जगीस ॥ १८ ॥ हिव अहमदावाद सुरम्म, जोगीनाथ साह सुधम्म ।
शत्रुंजय भटेणरंगि, तेड्या गुरु वेगि सुवंग ॥ १६ ॥
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