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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
जेसलमेरु धुंभ जाणियइ, प्रगट प्रभाव पुहवि माणीयइ ।
दरसण दीठइ अति उछाह, समरणि सवि टालइ दुखदाह ।।६।। खास सास जर पमुहज रोग, नाम लियइ नवि आए सोग।
। अधिक प्रताप सलहियइ आज, जो प्रणमइ तसुसारइ काज ||१०|| थाल विसाल थापना करी, निरमल नेवज आगलि धरी ।
केसरि चन्दन पूज रसाल, विरची चाढइ कुसमह माल ॥११॥ मृगमद मेलि अगर घनसार, भोग ऊगाहउ अतिहि उदार । ___ करि साथियउ अखंड तंदु लइ, सुगुणगान कीजइ तिह वलइ ॥१२॥ चित्त तणी सहि चिंता टलइ, मनह मनोरथ ततखिण फलइ ।
खरतरगणगयणिहि ससि समउ, भाविकलोक करिजोड़ी नम।।१३।। गुरु श्रीदेवतिलक उवझाय, प्रणम्यइ बाधइ सुह समवाय । अरि करि केसरि विसहर चोर, समर्यउ असिव निवारइ घोर ॥१५॥ ए चउपई सदा जे गुणइ, उठि प्रभाति सुगुरु गुण थुणइ ।
कहइ “पदममंदिर" मनशुद्धि, तसुथाए सुख संपति रिद्धि ।।१५।।
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