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________________ श्री देवतिलकोपाध्याय चौपई श्री पद्ममन्दिर कवि कृत श्री देवतिलकोपाध्याय चौपई ।। nिFHOS SA - - -- पास जिणेसर पय नमुं, निरुपम कमला कंद । सुगुरुथुर्णता पामियइ, अविहड सुख आणंद ॥१॥ भारहवास अजोध्या ठाम, बाहड गिरि बहुधण अभिराम । चवदहसइ चम्माल प्रसिद्ध, निवसइ लोक घणा सुसमृद्ध ॥२॥ ओसवाल भणसाली वंश, निरमल उभय पक्ष । ___ करमचंद सुहकरम निवास, तसुघरि जनम्या गुणह निवास॥३॥ तासु घरणि सोहण जाणियइ, सील सीत उपम आणीयइ । पनरहसइ तेत्रीसइ वास, तसु घरि जनम्या गुणह निवास ॥४॥ दीधउ जोसी देदो नाम, अनुक्रमि वाधइ गुण अभिराम । रामति रमतउ अति सुकमाल, माइ ताइ मन मोहइ बाल ।।५।। इगतालइ संजम आदरि, पाप जोग सगला परिहरी । भणीय सयल सिद्धांतां सार, छासठइ पद लयो उदार ॥६॥ श्रीदेवतिलक पाठक गहगहइ, महियलि महिमा सहुको कहइ । देस विदेशे करी विहार, भवियण नइ कीधा उपगार ॥७॥ ईसनयण नभरस ससि वास, सेय पंचमो मिगसर मास । करि अणशण आराहण ठाण, पाम्यउ अनिमिष तणउ विमाण || Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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