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श्री जिनहंससूरि गुरु गीतम्
श्रीभक्तिलाभोपाध्याय कृत * श्रीजिनहंससूरि गुरुगीतम् ।।
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सरसति मति दिउ अम्ह अतिघणी, सरस सुकोमल वाणि श्रीमन्जिनहंससूरिगुरुगाइसिउं, मन लीणउ गुण जाणि ॥१॥सर० अति घणीयदियउ मति देव सरसति, सुगुरु वंदण जाईइ । 'प्रहउठि श्रीजिनहंससूरि गुरु, भाव भगतिहि गाईइ ॥२॥ पाट उत्सव लाख वेची (पिरोजी) कर, करमसिंह करावए । गुरु ठामि ठामि विहार करता, आगरा जब आवए ॥३॥ तब हरखिउ डुंगरसी घणो, बंधव वली पामदत्त । श्रीमाल चतुर नर जाणियइ, खरतर गुरुगुण रत्त ।।४।। तब हरखिउ डुंगरसी करावइ, सुगुरु पइसारा तणी । बहु परें सजाई सहु सुगज्यो, वात ए छे अति घणी ॥५॥ 'पाखरया हाथी पादसाह, सुगुरु साम्हो संचरइ । गुरु पाय हेठइ कथीपानइ, पटोला बहु पाथरइ ॥६।। पातसाह साहमो आविउ, उंबर खान वजीर । लोक मिलिया पार न जाणियइ, मोरइ काच कपूर ॥णा आवीया साहमा पादसाह सबे वाजा वाजए । जेण सरणाइ जल्लरिसंख वाजइ, ससरिअ अंबर गाजए ॥८॥ मोति वधावइ गीत गावइ, पुण्य कलस धरइ सिरे । सिंगारसारा सब नारी करइ, उच्छव. घर घरे ॥६॥
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