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________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह जहि मस्तकि गुरु नियकरु ठवइ, तइ घरि नवनिद्धि संपद हवइ । सुह गुरु जेह भणावइ सीस, ते पंडित हुइ विस्वा वीस ॥१०॥ जिहां जिहां गुणवंता रहइ, तिहां श्रावक रिधिहि गहगहइ ॥ गाम नगर ते अविचल खेम, लबधिवंत जणिजह एम ॥११॥ पनरह पणवीसइ वरसंमि, वइसाखा वदिदिण पंचमि ।। पंचवीस दिण अणसण पालि, सरगि पहुंता पाव पखालि ॥१२॥ रविजिम झगमगि झिगमिग करइ, नवइ तेज तनु अणसण धरइ । अतिसय जिम तित्थंकरतणा, गुरु अनुभवि हुया अतिघणा ।।१३।। सुह गुरु अणसण सीधउं जांम, वीर विहारे देविहि ताम । झल हलंत दीवो पुण कीध, जडिय किमाडिहि लोक प्रसिद्धि ॥१४॥ जिम उदयाचलि उगउ भाणु, तिमपूरव दिसि प्रगट प्रमाणु । थापिउ थूभ सुनिश्चलजाण, श्री वीरमपुर उत्तम ठाणि ।।१५।। श्रीखरतर गणि सुरतर राय, जहि सिरि किर्तिरयण सूरि पाय । आराहउ भवियणइकचित्ति, ते मण वंछित पामइ झत्ति ॥१६॥ चिन्तामणि जिम पूरइ आस, पूजइ जे मनि धरिय उल्लास । तिणि कारणि गुरु चरण त्रिकाल, सेवइ नर नारि भूपाल ॥१७॥ श्री कीर्तिरतन सूरि चउपइ, प्रहउठी जे निश्चल थइ। भणइ गुणइ तिहि काज सरंति, "कल्याणचन्द्र"गणि भगतिभणंति ॥१८॥ ॥ इति श्रीकीर्तिरत्नसूरि चउपइ ।। सं० १६३७ वर्षे शाके १५८२ प्र. ज्येष्ठ मासे शुक्लपक्षे घेष्टा तिथौ गुरुवासरे। श्रीमहिमावती मध्ये श्रीवृहत्खरतर गच्छे श्रीजिन चन्द्रसूरि विजयराज्ये संखवाल गोत्रीय संघभार धुरन्धर साहकेल्हातत्पुत्रसा० धन्ना तत्पुत्रसा० वरसिंघ तत्पुत्र सा० कुवरा तत्पुत्र सा० नव्वा तत्पुत्र सा० सुरताण तत्पुत्रसा० खेतसीह भातृ साह चांपशी पुस्तिका करापिता पुत्र पुत्रादि चिरनंद्यात् । शुभं भवतु ।। [श्रीपूज्यजीके संग्रहस्थ गुटकाके पृ० ४२ से] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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