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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह माल्हूअ साख विशाल अहे,लूणिग कुलि महियलि तिलउ ए॥१०॥ लवधिर्हि गोयम सामि अहे, सीयलिहिं साधु सुदरशनु ए। सव्वड़ साह मल्हार अहे, राजल देविय नंदन ए ॥१॥ निरमल गुण भंडारो अहे, श्रीय जिनराजसूरे शीस वरो । संवम सिरि उरि हारो अहे, सागरचन्द्रसूरे पाटु धरो॥१२॥ सुमत्तणु-सुरतरु तेम अहे, सुकृत रसो भरि पूरीउ ए। गुणमणि रयणिहिं जेम अहे, लवणिम मंजरि अंकूरीउ ए ॥१३॥ दिणियर जिम सविकासो अहे, जसं कीयरतिगुण विसतरीए। जगि जयवंतउ सूरे अहे, पूरव गुर सवि उद्धरी ए॥१४॥ उद्धरिय धीरिम मे(रु) गिरि जिम, चन्द्रगछि मुख मंडणो। पंच समतिहिं त्रिहुं गुपिति गुपतउ, दुरित भवभय खंडणो। सिरि आइरिय मुवर कांति दिणियर, भविक कमल सविकासणो। जयवंतु श्रीय गुरु भावप्रभसूरि, जाम ससि गयणंगणो ॥१५॥
॥ इति श्रीमदाचार्याणां गीतम् ।।
श्रीरागि ढाल ॥ छ ।
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