________________
श्री भावप्रभसूरि गीतम्
श्रीभावप्रभसूरि गीतम्
समरवि सुहगुरु पाय अहे, ज(सु) दरसणि मनु उल्सइ ए । थुणीय मुणिवर राय अहे, कलियुगे जसु महिमा वसइ ए ॥१॥ निरमल निय जस पूरि अहे, चन्दन वन जिम महिमहइ ए । श्रीय भावप्रभसूरि अहे, श्रीयखरतरगछे गहगहइ ए ॥ २ ॥ अमिय समाणीय वाणि आहे, नवरस देसण जो करइ ए । समय विवेक सुजाण आहे, समकित रयण सो मनि धरइए || ३ || पंच महव्वधार आहे, पंच विषय परि गंजणू ए ।
४६
पालय पंच आचार अहे, पंचमि (ध्यात्व) भंजणूं ए ॥ ४ ॥ भंजणु मोह नरिंदो अहे, मयणु महाभडो वसि कीउ ए । वस की कोहु गयंदो अहे, मानु पंचाननु वन (स?) कीड ए ॥५॥ चमकीउ दलिउ कषाय आहे, लोभ भुजंगमु निरुजणिउ ए । निजणि अरि रागाय आहे, सयल सुरा सुरे सेवीयउ ए ॥ ६ ॥ . सेवइ जसु पय साध आहे, पंकय महूअर रुण उणइ ए । धन धनु जे नरनारि अहे, नित नितु प्रभु गुण गण थुणइ ए ॥७॥ मंगल लछि विलास अहे, पूरइ ए वंछिय सुहकरू ए । निरुवम उवसम वास अहे, रंजण भविअण मुणिवरू ए ॥ ८ ॥ नव रस देसण वाणि अहे, घण जिम ग़ाजइ ए गुहिर सरे । मयण दवानल वारि अहे, नागिहिं जलि वरिसइ सुखरे ॥ ६ ॥ विहरs सुविही याचार अहे, कास कुसुम जसु निरमलउ ए ।
४
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org