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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
साहेली ए नितु नवतत्व वखाण ए जाण ए सयल सिद्धान्त सारो । साहेली ए मगहर रूपि अनोपम संजम निरमल गुण भंडारो । साहेली ए गोयम जंबु कि अभिनवड अभिनव थूलभद्द वयर गुरि । साहेली ए संपइ प्रणमउ गच्छपति श्रीजिनभद्रसूरि जुग पवरो |२८| साहुसाखह तिलउ बछराज साह मल्हारो |
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स्याणीय कुखंहि अवयरिउ छाजइ खरतर गच्छ भारो । साहेली ए संपय पणमउ गच्छपति श्रीजिनचन्द्र सूरि युगपवरो । दंसणि भवियण मोहए सोहइ सूरि गुणरयण धरो ॥ २६ ॥ छंद:
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जुगवर तणा गुणरयण पूरी गरुअ एह गुरावली । श्रीसंघ भाविहिं सांभली ती मन तणी पूरउ रली ॥ आराधतउ विधि खरतर सं इम भणइ भगतिहि सोमकुंजर जाम चंद दिणंद ||३०|| इति श्री विधिपक्षालंकार श्रीखरतर गुरुणा गुर्वावली समाप्ता ॥
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नोट: - श्रीजिनकृपाचन्द्र सूरि ज्ञानभण्डारस्य गुटके में २९ वीं गाथा अतिरिक्त मिली है ।
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ज्ञात होता है उस प्रतिके लिखने के समय जिनचन्द्रसूरि विद्य मान होंगे अतः यह १ गाथा उसीमें वृद्धि कर दी है ।
१ चंदइ गणधर गरूयउ
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