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________________ जिनादयसूरि गुण वर्णन ३६ ॥ पहराज कवि कृत ॥ # जिनोदयसूरि गुण वर्णन RE किणि गुणि सोववितवणं, सिद्धिहिका भंति तुम्ह हो मुणि। संसार फेरि डहणं, दिखा बालाणए गहणं ॥१॥ बालत्तणि वय गहण सुपुणि मुणिवर संभालियउ । अट्ठ कम्म निजणवि गमण दुग्ग गइ टालियउ ।। उग्गु तवणु जिण तवउ वितु संमतहि रहिउ ।। संजम फरिसु पहाणु मयण समरंगणि बहिउ । जिणउदय सूरि पुय पय नमहि, ति नर मुक्ति रमणी रमइ । "पहराज" भणइ तुइ विन्नउं, अजउ भवणु किणि गुणि तवहि॥१॥ लीलयति सिद्धि पावहि जे नर पणमति एरिसा सुगुरु । मुणिवरह वित्त कलिउ नहु मन्नइ अन्न तियस्स ॥१॥ मुणिवर मनुमय कलिउ भत्ति जिणवरह मनावइ अवर तरुणि नहु गमइ सिद्धिरमणि इह भावइ । करइ तवणि बहु भंगि रंगि आगम वखाणइ । अबुह जीव बोहंत लेत सुभत्थह नाणय ।। जिणउदय सूरि गच्छाहवइ, मुख मग्गि धोरि सुपह । “पहराज" भगइ सुपसाउ करि, सिव मारग दिखाल महु ।।२।। • सुगुरु शिव मग्ग जूय किय कला विसारह मंस भखण परिहरउ सुरा सिउं भेउ निवारइ। वेसन रख कउ पंघ पाउ पारदहि अणंतउ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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