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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
चोरी म करि अयाण रखि दुग्गय जिउ जंतउ ॥ पर रमणि मिल्हि सत्तय वसणि, जीव दय दृढ संग्रहयउ । जिणउदयसूरि सुहगुरु नमहु, सिद्धि रमणि लीलइ लहउ ।।३।। सुगुरु सिद्धि इम भणइ कित्ति तूय तणी थुणिज्जइ ।
सुगुरु देव इम भणय लीह गणहर तुय दिज्जय । सुगुरु सुविह गण वित्ति अचलु तुय नामहि लग्गउ ।
___ तुहत पढइ सिद्धंत सुगुरु जिनभत्ति विलग्गउ ।। जिण उदय सूरि जग जुगपवर, तुय गुण वनउं सहसि फणि ।
एरसउ सुगुरु हो भवियणह, कहय सिद्धि णन्भन्तमणि ॥४॥ कवणि कवणि गुणि थुणउं कवणि किणि भेय वखाणउ ।
थूलभद तुह सील लब्धि गोयम तुह जाणउ । पाव पंक मउ मलिउ दलिउ कन्दप्प निरुत्तउ ।
तुह मुनिवर सिरि तिलउ भविय कप्पयरु पहत्तउ ।। जिणउदयसूरि मणहर रयण, सुगुरु पट्टधर उद्धरणु । “पहुराज" भणइ इमजाणि करि, फल मनवंछिउ सुह करणु ॥५।। फल मनवंछिउ होइ जि किवि तुइ नाम पयासय ।
तुझ नाम सुणि सुगुरु रोर दारिद पणासइ । नामगहणि तुय तणय सयल श्रावय उस्सासहि ।
.............॥ जिणउदयसूरि गणहर रयणु, सुगुरु पट्टधर उद्धरणु । "पहुराज" भणइ इम जाणि करि, सयल संघ मंगलु करणु ॥६॥
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