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________________ खरतर गुरु गुण वर्णन छप्पय नवलख कुलि घणसोहनंदणु सुप्रसिद्धउ, खेताहि aिय कुखि जाउ बहु गुणह समिद्धउ । बालकालि निज्जणवि मोह संजम सिरि रत्तउ, गोयम चरिय पयास करणु इणि कालि निरुत्तउ । जिण पदम सूरि पटटुद्धरण, वयरसाह उन्नति करु | जिनलबधिसूरि भवियहु नमहु, चंदगछि मुणि जुगपवरु ||२३|| उदय वडउ संसारि उदय सुरवर नर नंदय, उदय कितहु गह गयणि उदय सहसकर वंदय । उदय लगी सवि कज्ज रज्ज सिझंत प्रमाणइ, उदउ अनुपम अचल उदय वलि वलि वखाणइ । धन धणय पुत्त परियण सयल, उदय (ल) गी जैस वित्थरइ । जिणउदय सूरि इणि कारिणर्हि, उदउ सयल संघइ करइ ||२४|| जिम चिंतामणि रयण मझि उत्तम सलहिज्जइ, जिम कणयाचल गिरिह मझि किरि धुरहि ठविज्जइ । जिम गंगाजल जलइ मझि सुपवित्त भणिज्जइ, जिम सोह गह वत्थु मझि ससहरु वन्निज्जइ । जिम तरुह मझि वंछित्त करु, सुरतरु महिमा महमहइ । जिम सूरि मझि जिणभद्दसूरि, जुगपहाण गुरु गहगहइ ||२७|| जिणि उम्मूलिय मोहजाल सुविसाल पयंडिहि, जिणि सुजाणि किवाणि मयणु किउ खंडो खंडिहि । ३५ जसु अगाइ मइ कोह लोह भड किमिहि न मंडिहि, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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