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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
उडगण सऊहिं वंदु इंदु जिम सग्गि पसिद्धउ,
गिरवर मझिहिं मेरु राउ जिम रह निरत्तउ । तिम एह भूरि सूरिहिं पवरु जिणपबोहसूरि सीसवरु,
जिणचंदसूरि भवियहु नमहु, पहवि पसिद्धउ जुगपवरु ।।१८।। जिण सासण वर रजि चंद गछिहिं समरंगणि,
वरण तुरंगमि चडवि खंतिक्खर खग्गु गहेविणु । जिण आणा सिरिसिरकु सीलि संनाहु सुसजिउ,
पंच महव्वय राय सबल मुणिपत्ति अगंजिउ । एररिसउ सुहडु जिनकुसल सूरि, पिखेविण रहरियतणु ।
अणभिडिउ मुडिउ मुणिपय पडिउ मयणमाणु मिल्हेवि पुण ॥१६॥ उत्तर दिसि भद्दवइ मासि जिम गज्जइ जलहरु,
जिम हत्थी गडयडइ जेम किन्नरि सरु मणहरु । सायरु जिम कल्लोल करइ जिम सीह गुंजारइ,
जिम फुल्लिय सहयार सिहरि कोइल टहकारइ । सघोस घंट जिण जम्मक्खणि, वज्जतिय जिम त्रत्रहइ,
जिणपदम सूरि सिद्धंत तिम, वखाणंतउ गहगहइ ।। २१ ॥ जिम अन्तर गोइक दुद्धि अंतरु मणि सुरमणि,
जिम अंतरु सुरतरु पलास जिम जंबुय केसरि । जिम अंतरु बग रायहंस जिम दीवय दिणयर,
जिम अंतरू गो कामधेण जिम अंत(रु) सुरेसर, जिणपदम सूरि तिम (अ)न्नगुरु, एवड अंतरू भविय मुणि ।
खरतरह गछि मुणवर तिलउ इथु जीह किम सकउ थुणि ।।२२।।
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