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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह गय जिम जिणि भव रुक्ख भग्ग तव सुंडा दंडिहि । सो गछनाह जिणभदगुरु, वंछिय पूरण कप्पतरू, ।
कल्लाण वल्लि नवधार धरु, वसह मझि जयवंत चिरु ॥२८॥ जिणि दिणि दुल्लभ सभा सखर खरतर जे तिण दिणि,
पडिबोहिय चामुण्ड फुडवि खरतर जे तिणि दिणि । जिणीय वाद छट्ठमइ मासि फुड खरतर तिणिदिणि, .
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रंजिय नरवंम नरिंद जिहिं, धारनयर स्युं नरवरा !
जिणभद्रसूरि ते तुझ सवि, अखिल खोणि खरतर खरा ॥३१॥ वेशाखि (षि) का मदांति सांख्य सोगत नैयायक,
मीमांसक मुख मुखरवादि गुरु गर्व निवारक । उत्सूत्राविधि मार्ग वर्ग देशक यति व्रजा,
करटि घटांकुश कुल विशाल सौधोकल सुध्वज । जन नयन सुधाकर रुचिरकर, मदन महीधर कुलिशधर,
जय सूरि मुकुट गत कपट भट, गुरु जिणभद्द युगपवर ॥३२॥ सयल गरूय गुण गण गणिंद गण सीस मउड़ मणि,
निय वयणिहिं पर वादि निधड़इ सुतक्खणि। सवि आचार विचार सार विहिमग्ग पयासइ,
। भविय जण मण विमल कमल रवि जेम पयासइ । पुरि नयरि देसि गामागरहि, विहरतउ सो होइ सुगुरु ।
सो जयउ जिणेसर सासणिहि, श्रीजिणभद्र मुणिंदवरु ।।३३।।
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