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खरतर गुरु गुण वर्णन छप्पथ
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पाणि तणइ विवादि रज्ज जयसिंघ नरिंदह ।
___उज्जेणी वर नयरि भुवणि पहु संती जिणंदह । जिणवलम जिणदत्त सूरि जिणचन्द जईसरु ।
रंजिय जिणवय सूरि धरह सिरि सूरि जिणेसर ॥ ता ? उन्हउं सीयलु जयह जलु, फासूय थप्पिय विवहप्परि । निन्जिणिउ विजयाणंद ति(लि:)हि, अभयतिलकि चउपट्टि धरि॥२४॥ रयणि रमन रमणि पवेसु न्हवणु नहु, निसहि
जिणेसर नं दिन दोसा समय बलि न सव्वरिय विसरुह । नहु जामणहि पवट्ठरत्ति रहु भमइ नभमणह ।
नहु विहारि वखाणु जत्त तुगी भरि समणह ।। भवियणहु जहिनइ त्तिय अवहि, तह सुयंमि धुयरय करउ ।
तरु मोहं मूल मूलण गयह, जिणवल्लह पय अणुसरउ ॥२५।। जिणदत्त सुरि मंगल मंगलु, जिणचन्द्रसूरि रायस्स ।
जिणवय सूरि जिणेसर, मंगलु तह वद्धमाणस्स ॥१॥ वद्धमाण घणगुणनिहाण मंगलु कलि अमिलह ।
सुगुरु जिणेसर सूरि वसहि पयडण धुरि धवलह । मंगलु पहु जिणचन्द अभयदेवह जिणवल्लह ।
__ मंगलु गुरु जिणदत्त सूरि मंगलु जिणचन्दह ।। जिणपत्ति सूरि मंगलु अमलु, जास सुजस पसरिय धरह ।
चउविह सुसंघ संरुल्ह कवि, मंगल सूरि जिणेसरह ।।२६।। कहस चन्द्र निम्मलह कहस तारायण निम्मल ।
कहस सुपवित्त कहस बगुलउ अय उज्जल ।।
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