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ऐतिहा सक जैन काव्य संग्रह कहस नीर सुरसरीय कहस वाहलोय पवित्तिय ।
पदमराग कह गुरुय कहस परिय रंगिय ।। जिणपदम सूरि पटु पटुधर, अमिय वाणि देसण वरिस । तुडि कर सुजीह किनगलि पडिसि, जिनलब्ध सूरि गणहरसरसु॥२७॥ एने बेरि खजूरि जतइ सिरिविडि करि भखिय ।
एन अंब अम्बलिय दख दाडिम जं चखिय । एन जंब जंबूयह सयल पिप्पल जं असियह ।
___ बडआरू य उबरन एय एय पसर जबसिय ।। पउमप्पह नारिंग नह सु नयनिमल कोमल महूय ।
जिणपत्ति सूरि नालियर इह, अररि कोर वंच भंजेय तुय ।।२८।। जिम नसि सोहइ चंद जेम कजलु तरुलछहि ।
हंस जेम सुरवरहि पुरिस सोहइ जिम लछिहि । कंच' जिम हीरेहि जेम कुल सोहइ पुत्तहि ।
रमणि जेम भत्तार राउ सोहइ सामंतइ । सुर नाह जेम सोहइ सुरह, जगि सोहइ जिणधम्म भरु ।
आयरिय मझि सिंहासणहि, तिम सोहइ जिणचन्द गुरु ॥२६॥ दसणभद्द नरनाह वीर आगमि आणंदिय ।
पभणइ वंदिसु तेम जेम केणावि न वंदिय । रह सजिय गय गुडिय तुरिय पवरिय पलाणिय ।।
सुखासण सय पंच वडवि चल्ल धितिहि राणिय ।। बहु छत्त चमर परवारि सउं, जाम सपत्त समोसरणि ।
ताम इंद तसु मणु मणवि, अयरावइ आदसइ मणि ॥३०॥
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