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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
पनरह सय तापस पबोह दिखिय जिण सत्तिहि ।
पारावइ इग पत्ति सव्व खीरह घिय खंडहि ॥ अखीण महाणसि लट्ठिवर, गोइम सामिय गुण तिलउ ।
जसु नामिण सिज्झइ कज्ज सवि, सोझायउ तिहुयण तिलउ ॥२१॥ सो जयउ जेण वहियं पंचमि (घाउ) चउत्थिपजूसरण ।
. पख चउदसि जाया नम्मविया कालकाइरियो। कालिकसूरि मुणिंद जयउ तिहुअण मण रंजण ।
उज्जेणो गदभिल्ल राय मूलह निकंदण ।। सरसइ साहुणि कज्जि सिंघ लंछण जिणि रखिय ।
सोहम्माइवईद सयल आउखउ अखिय ॥ मरहट्ठदेसि पयठाणपुरि, सालवाहण अवरोहपर।
सो कालिगसूरि संघह जयउ, चउत्थि पजूसरण विहिय धरि ॥२२॥ जिणदत्त नंदउ सुपहु जो भारहमि जुगपवरो।
अंबाएवि पसाया, विन्नाउ नागदेवेण ॥ १॥ नागदेव वर सावएण उज्जित' चडेविणु ।
पुछिय जुगवर अंब एवि उववास करे विणु ।। तसुर सत्ति तुट्ठाय तीय, करि अखरि लिखिया।
भणिउ जवाईय पम्ह सय ४, जुगपवर सुधम्मिय ॥ भमिऊण पहवि अणहिल्लपुरि, जुगपहाण तिणि जाणियउ ।
जिणदत्तसूरि नंदउ सुपहु, अम्बाएवि वखाणियउ ॥२३।। गह धम्मो देव सिसी फुग्गण कन्नाय च (उ)दसी दिवसे ।
पंडिय वजयाणंदो निज्जणिय "अभयतिलकेण" ।। १॥
१ उजित चंदेषिणु २ तासु ३ सघाइय ४ सेय
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