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________________ खरतर गुरु गुण वर्णन छप्पय वासिग उप्परि धरणि धरणि उप्परि जिम गिरिवर । गिरिवर उप्परि मेह मेहु उप्परि रवि ससिहर ॥ ससिहर उप्परि तियस तियस उप्परि जिम सुर वर । इंदुप्परि नवगीय गीय उप्परि पंचुत्तर ॥ सव्वट्ठसिद्धि तसु उप्परि, जिम तसु उप्परि मुक्ख हलि । तिम सूरि जिणेसर जुगपवर, सूरहिं उप्परि इत्थ कलि ॥१८॥ कुसल बड़ो संसार, कुसल सज्जण जण चाहइ। कुसलइ मइगल वारि लछि कुसलहि घरि आवइ । कुसलहि घण वरसंति कुसलि धण धन रवन्नउ । कुसलहि घोड'घट्टि कुसलि पहिरिय सुवन्नउ ॥ एरिसउ नाम सुह गुरु तणउ, कुसलहि जग रलियामणउ । जिण कुसल सूरि नाम ग्रहणि, घरि घरि होइ वधामणउ ॥१६॥ दस सय चउवीसेहि नयरि पट्टणि अणहिलपुरि। हूयउ वाद सुविहतह चेइवासी सउं बहु परि ॥ दुल्लभ नरवइ सभा समुखि जिण हेलइ जित्तउ। चित्तवास उत्थप्पिय देस गुज्जरह वदित्तउ । सुविहित्त गछि खरतर विरुद, दुल्लभ नरवइ तहि दियइ । सिरि वद्धमाण पट्टह तिलउ, जिणेसर सूरि गुरु गहगहइ ॥२०॥ रवि किरणेहू वलग्गि चडिय अट्ठावय तित्यहि । निय २ वन्न पमाण बिंब वंदिय जिण भत्तिहि । १ सुप्परि २ घोडाथट्ट ३ करि Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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