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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह मंगल सिरि अरिहन्त देव, मंगल सिरि सिद्धह ।
मंगल सिरि जुगपवर सूरि, मंगल उवझायह ।। मंगल सुविहिय सव्व साहु, मंगल जिणधम्मह ।
- मङ्गलु विहरइ सव्व सङ्घ, मङ्गल सन्नाणह ॥ सुयएवि होइ मङ्गलु अमलु, मङ्गलु जिण सासण सुरह ।
वर सीसह जिणवय सुह गुरुह, मङ्गल सूरि जिणेसरह ।।१५।। माल्हू साख सिंगार साह रतनिग कुलमंडणु।
झूदाउत सुख संसि पुहवि धारलदे नंदणु ॥ चउदह सय पनरेतिरइ कसिण आसाढ़ह तेरसि ।
पट्ट महोच्छव कियड़ साह रतनागर वरसि ।। खरतरह गच्छि उज्जोय करु, जिणचन्द सूरि पटु धरणु ।
जिणउदय सूरि नंदउ सुपहु, विहिसंघह मङ्गल करणु ॥१६॥ जिम जलहरंमि मोर जिहा वसंतमि कोकिला हुंती ।
सूरउग्गमणे कमलु तह भविया तुह आगमणे ॥ जिम जलहर आगमणि मोर' हरसिय मण नच्चइ ।
जिम दिणियर उग्गमणि कमल वणसिरि सिरि विकसइ ।। ससिहर संगम जेम सयल सायरू जल विकसइ ।
जिम वसंति महियलि हंसंति कोयल मइ मच्चइ ॥ तिम सूरि नाउ जिनउदय गुरु, पट्टाहिव रसि (?वि) उक्कसिय ।
जिनराजसूरि गुरुदंसणहि भविय नयण मण उल्हसिय ॥१७॥
१ देहलइ
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