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खरतर गुरु गुण वर्णन छप्पय . अजितनाथ वर भवण नंदि मंडिय गुरु वत्थिरि ।
सयल संघ बहु परि मिलिय रलिय पूरिय मनभिंतरि । जिण कुशल सूरि सीसह तिलउ, जिणचन्दह पटुद्धरणु ।
जिणचंदसूरि भवियह नमउ, सयल संघ वंछिय करणु ॥१शा गुण गण वेय मयंक वरसि फग्गुण वदि छ?हि ।
अणहिलपुरि वरि नंदि ठविय संतीसर दिट्ठिहि ।। सिरि लोयआयरिय मंतु अप्पिय सुमुहुत्तहि ।।
सिरि जिणउदय मुणिंद पट्ट, उद्धरिय धरित्तहि ।। छतीस गुणावलि परिवरिय, चन्द गच्छ उज्जोय करु ।
जिणराजसूरि गुरु जगि जयउ, सयल संघ आणंदयरु ॥१२॥ पण सग वेय मयंक' वरसि माहह छण वासरि।
भाणुसल्लि वर नयरि अजियनाहह जिण मंदिरि ।। नंदि ठविय वित्थारि सुगुरु सागरचन्द गणहरि ।
सूरि मंतु जसु दिद्ध' किद्ध मंगलु विवहु प्परि ॥ जिणराजसूरि पट्टह तिलउ, जिणसासण उज्जोयकरु। ___ जा चन्द सूरि ता जगि जयउ, सिरि जिणभह मुणिंद वरु ॥१३॥ मंत मझि नवकार सार नाणह धुरि केवल ।
देव मझि अरिहन्त सव्व फुल्लह धुरि उप्पलु ॥ रुख मझि वर कप्परुख संघह धुरि मुणिवर ।
__ पखि मझि जिम राजहंस पव्वय धुरि मंदिर । जिणराजसूरि पटुद्धरण, भविय लोय पडिबोहयर ।
तिम सयल सूरि चूडारयण, जिणभद्दप्पहु जुग पवर ॥१४॥ १ पुब्धय २ दिट्ट ३ विवह
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