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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह जिणचन्दसूरि वइसाखयइ, सुद्ध छट्ठि विकमपुरहि ।
___ जयवंत हुउ जिण सासणहि, सय बारह पंचत्तरहि ।। ७ ।। बव्वेरइ जिणपत्तिसूरि बारह तेवीसइ ।
कत्तिय सिय तेरसिहि पट्ट जयवंतउ दीसइ। माह छट्टि जालउरि सुद्धतहि ठविय जिणेसर।
बारह अठहत्तरइ रुप लावन्न मणोहर ।। जिणपबोह सूरि आसोज पंचमि, जालउरय भयउ ।
इकतीस वरसि अनुतर सइ, पट्ट तरु इणि परि लयउ ॥ ८॥ तेरह सय इगताल सुगुरु जिणचन्द सुणिज्जय ।
- वयसाखह सिय तीय नयरि जालउरि थुणज्जय ।। तेरह सय सत्तहत्तरइ सूरि जिणकुसल पसिद्धउ ।
जिट्ट कसिण इग्यारसहि पटु अणहिलपुरि दिद्धउ ।। जिणपदमसूरि तेहर (रह) नवइ. जिट्ठ मासि उच्छव भयउ ।
___ तह सुद्ध छठि देराउरहि, सयल संघ आणंदयउ ।। ९ ।। सय चउदह जिण लबधि सूरि पट्टहि सुपसिद्धउ ।
आसाढ़ह वदि पडवि तहवि पट्टागम किद्धउ ॥ तासु पट्टि इहु सुगुरु ठविय चउदह सय छडोत्तरि ।
जेसलमेरह माह दसमि सुद्धइ सुह वासरि ।। नर नारि ताह मंगल करइ, जिण सासणि उछव भयउ ।
जिणचन्द सूरि परिवार सउं, सयल संघ अणुदिणु जयउ ॥१०॥ खंभ नयरि मझारि चउद पनरोतर वरसहि ।
दियइ मंतु आयरिय इंद आणंदिय सग्गहि ।।
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