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________________ २६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह जिणचन्दसूरि वइसाखयइ, सुद्ध छट्ठि विकमपुरहि । ___ जयवंत हुउ जिण सासणहि, सय बारह पंचत्तरहि ।। ७ ।। बव्वेरइ जिणपत्तिसूरि बारह तेवीसइ । कत्तिय सिय तेरसिहि पट्ट जयवंतउ दीसइ। माह छट्टि जालउरि सुद्धतहि ठविय जिणेसर। बारह अठहत्तरइ रुप लावन्न मणोहर ।। जिणपबोह सूरि आसोज पंचमि, जालउरय भयउ । इकतीस वरसि अनुतर सइ, पट्ट तरु इणि परि लयउ ॥ ८॥ तेरह सय इगताल सुगुरु जिणचन्द सुणिज्जय । - वयसाखह सिय तीय नयरि जालउरि थुणज्जय ।। तेरह सय सत्तहत्तरइ सूरि जिणकुसल पसिद्धउ । जिट्ट कसिण इग्यारसहि पटु अणहिलपुरि दिद्धउ ।। जिणपदमसूरि तेहर (रह) नवइ. जिट्ठ मासि उच्छव भयउ । ___ तह सुद्ध छठि देराउरहि, सयल संघ आणंदयउ ।। ९ ।। सय चउदह जिण लबधि सूरि पट्टहि सुपसिद्धउ । आसाढ़ह वदि पडवि तहवि पट्टागम किद्धउ ॥ तासु पट्टि इहु सुगुरु ठविय चउदह सय छडोत्तरि । जेसलमेरह माह दसमि सुद्धइ सुह वासरि ।। नर नारि ताह मंगल करइ, जिण सासणि उछव भयउ । जिणचन्द सूरि परिवार सउं, सयल संघ अणुदिणु जयउ ॥१०॥ खंभ नयरि मझारि चउद पनरोतर वरसहि । दियइ मंतु आयरिय इंद आणंदिय सग्गहि ।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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