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ऐतिहासिक जैन-काव्य संग्रह
-कीप्रस्तावना
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जैन-धर्म भारतवर्षका एक प्राचीनतम धर्म है । इस धर्मके अनुयायियोंने देशके ज्ञान-विज्ञान, समाज, कला-कौशल आदि वैशिष्ट्यके विकासमें बड़ा भाग लिया है। मनुष्यमात्र, नहीं-नहीं प्राणीमात्र में परमात्मत्वकी योग्यता रखनेवाला जीव विद्यमान है। और प्रत्येक प्राणी, गिरते-उठते उसी परमात्मत्वकी ओर अग्रसर हो रहा है । इस उदार सिद्धान्तपर इस धर्मका विश्वप्रेम और विश्वबन्धुत्व स्थिर है । भिन्न-भिन्न धर्मों के विरोधी मतों और सिद्धांतोंके बीच यह धर्म अपने स्याद्वाद नयके द्वारा सामजस्य उपस्थित कर देता है । यह भौतिक और आध्यात्मिक उन्नतिमें सब जीवोंके समान अधिकारका पक्षपाती है तथा सांसारिक लाभोंके लिये कलह
और विद्वषको उसने पारलौकिक सुखकी श्रेष्ठता द्वारा मिटानेका प्रयत्न किया है। ___ जैन-धर्मकी यह विशेषता केवल सिद्धान्तोंमें ही सीमित नहीं रही। जैन आचार्यों ने उच्च-नीच, जाति-पांतका भेद न करके अपना उदार उपदेश सब मनुष्योंको सुनाया और 'अहिंसा परमो
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