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________________ श्री जिनकुशलसूरिपट्टाभिषेक रास १७ ता गुरु राजेन्द्रचन्दसूरि, आचारिज वर राउ । सुय समुद्द मुणिवर रयणु, विवेउसमुद्द उवझाउ ॥ ११ ॥ संघ सयल गुरु विनवए, तेजपालु सुविसेसु । पाट महोच्छव कारविसु, दियइ सुगुरु आएसु ॥१२॥ त संघ वयणि आणंदियउ, जाल्हण तणउ मल्हार । ___ त देस दिसंतर पाठवए, कुंकउती सुविचारु ॥ १३ ॥ सुणिउ उछवु अणहिल्ल पुरे, सुधनवंत सुह गेह । त सयल संघ तिक्खणि मिलिय, पावसि जिम घण मेह ॥१४॥ कंठ ट्ठिउ गोलय सहिउ, गुरु आणा संजुत्तु । ___ वायवंतु वाहड़ तणउ, विजयसीहु संपत्तु ।। १५ ।। त पइसारउ संघह कियउ, वजहि वजंतेहि । जिम रामहि अवडा नयरि, ढक्क बुक्क पमुहेहि ॥ १६ ।। दीण दुहिय किरि कप्पतरो, राय पसाय महंतु।। त धम्म महाधर धुरि धवलो, देवराज पवर मंत्रि ।। १७ ।। त तसु नंदणु जेल्हा घरणि, जयतसिरी बखाणि । त कुसलकीरति तहि कुलि तिलकु, घण गुण रयणह खाणि ॥१८॥ तेरहसय सतहत्तरइ किन्नंग (?कृष्ण) इगारसि जिट्ट । सुर विमाणु किरि मंडियउ, नंदि भुवणि जिणि दिहि ॥१६॥ त राजेन्द्रचन्द्रसूरि, जिणचन्दसूरिहि सीसु । ___ त कुशलकीरति पाटहि ठविउ, मणहर वाणारिस ॥ २० ॥ नाम ठवियउ जिणकुशलसूरि, वज्जिय नंदिय तूर । ___ त संधु सयलु आणंदियउ, मणह मणोरह पूर ।। २१ ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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