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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
सयल कला संपुन वंदु, जिणचन्द मुणिंदु ॥४॥ वाइ करडि केसरि किसोरु, जिणपत्ति जईसू ।
पुणवि जिणेसर सूरि सिद्ध, आरंभिय सीसु । सयल शुद्ध सिद्धंत सलिल, सायर अप्पारू ।
जिणपबोह सूरि भविय कमल, सविया गणधारू ।।५।। तयणं तरु गोयमह सामि, सम लद्धि समिद्धिउ ।
बहुय देसि सुविहिय विहारि, तिहुअणि सुपसिद्धउ । "कुतबदीन" सुरताण राउ, रंजिउ स मणोहरु । ___ जगि पयडउ जिणचंदसूरि, सूरिहि सिर सेहरु ॥ ६॥
॥ घातः ॥ चंद कुल निहि चंद कुल निहि, तवइ जिम भाणु ।
नाण किरण उज्जोय करु, भविय कमल पडिबोह कारणु । कुग्गह गह मच्छिन्न पह, कोह लोह तमहर पणासणु । महि मंडलि अच्छरिय धरो, जिण रंजिउ सुरताणु ।
सूरि राउ सो सग्गहि गयउ, जाणिउ निय निरवाणु ॥ ७ ॥ त अह डिल्लिय पुर वर नयरि, जिणिचंदसूरि गणधारु ।
त जयवल्लह गणि तेडियउ, मंतु कियउ सुविचारु । त विजयसीह ठक्कर पवरो, महंतियाण कुलि सारु । तउ नामु ठामि (मु)तसु अप्पियउ, तउ गोलइ(गोयम)सउं गणधारु।। त गुज्जरधर मंडणउ, अणहिलवाडउ नाम ।
. त मिलिय संघु समुदाउ तहि, महतियाण अभिरामु ॥ ६ ॥ त उसवाल कुल मंडणउ, तेजपाल तहि साहु ।
त लहु बंधव रूदइ सहिउ, गुरु साहम्मि पसाउ ॥ १० ॥
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