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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
॥श्री जिणदत्तसूरि स्तुति ।।
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सिरि सुयदेवि पसाउ करे, गुरु श्रीजिणदत्त सुरि।
· वन्निसु खरतर गण गयणि, सूरि जेम गुण पूरि ॥१॥ संवत इग्यारह वरसि, बतीसइ जसु जम्म ।
वाछिग मंत्री पिता जणणि, बाह (ड) देवि सुरम्म ॥ २ ॥ इगतालइ जिणवय गहिय, गुणहुत्तरइ जसु पाट ।
वइसाखइ वदि छट्टि दिणि, पय पणमी सुर घाट ॥३॥ अंबड सावय कर लिहिय, सोवन अखर अंबि ।
जुग पहाण जगि पयडियउ ए, सिरि सोहम पडिबिंब ॥४॥ जिण चोसठि जोगिणी जितिय, खित्तवाल बावन्न ।
डाइणि साइणि विभूसीय, पहुवइ नाम न अन्न ।। ५ ।। सूरि मंत्र बलि कर सहिय, साहिय जिण धरणिंद ।
___सावय सविय लख इग, पडिबोहिय जण वृन्द ॥ ६॥ अरि करि केसरी दुट्ठदल, चउविह देव निकाय ।
आण न लोपि कोइ जगि, जसु पणमइ नरराय ।। ७ ।। संवत बारह इग्यार समइ, अजयमेरुपुर ठाण ।
इग्यारसि आसाढ़ सुदि, सग्गिपत्त सुह झाणि ।। ८ ॥ श्री जिणवलह सूरि पए, श्रीजिणदत्त मुणिंदु ।
. विग्ध हरण मङ्गलकरण, करउ पुण्य आणंदु ॥ ६ ॥
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