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________________ श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टकम् श्री पुण्यसागर कृत ॥ श्रीजिनचन्द्रसूरि अष्टकम् ॥ श्रीजिनदत्त सुरिन्दपय, श्रीजिनचन्द्र मुणिन्द । नय (?) र मणि मंडित भाल यस, कुसल कुमुद वणचंद || १|| संवत सिव सत्ताणवयं, सद्दट्ठमि सुदि जम्मु । रासल तात सुमातु जसु, देल्हण देवि सुधम्म ॥ २ ॥ संवत बार तिरोत्तरय, फागुण नवमि विशुद्ध । पंच महव्वय भरि धरिय, बालत्तणि पडिबुद्ध ॥ ३ ॥ बारह सइ पंचोतरइ ए, वैशाखाह सुदि छट्ठि | थापि विकमपुर नयरि, जिणदत्त सूरि सुपट्टि ॥ ४ ॥ तेविस भाद्रव कसिणि, चवदसि सुह परिणामि । सुरपुरि पत्तउ मुणिपवर, श्री जोयणिपुर ठामि ॥ ५ ॥ सुह गुरु पूजा जह करइ ए, नासय तासु किलेस । रोग सोग आरति टलइ ए, मिलइ लच्छि सुविशेष || ६ || नाम मंत्र जे मुख जपइ ए, मणु तणु सुद्धि तिसँझ | मनवंछित सवि तसु हुवई, कज्जारंभ अझ ॥ ७ ॥ जासु सुजसु जगि झिगमिगै ए, चंदुज्जल निकलंक । प्रभु प्रताप गुण विप्फुरइ. हरइ डमर अरि संक ।। ८ ।। इय श्रीजिनचन्द्रसूरि गुरु, संधिणिउ गुणि पुन्न । श्री " पुण्यसागर" वीनवइ, सहगुरु होउ सुप्रसन्न ॥ ६ ॥ इति श्री जिनचन्द्रसूरि महाप्रभावीक अष्टकं संपूर्णम् । (गुलाबकुमारी लायब्रेरीके गुटका नं० १२५ से उद्धृत) Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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