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श्री गुरु गुण षटपद
सूरिमंतु सिरि सव्वएवसूरहि जसु दिनउ ।
. जालउरहि जिणवीर भुवणि बहु उच्छव (की) नउ ॥ कंसाल ताल झलरि पडह, वेण वंसु रलियामणउ ।
सुपढंति भट्ट सुंमहि गहिर, जय जय सद्द सुहावणउ ॥णा जिणवल्लह जिणदत्त सूरि जिणचंदु जु जिणवइ ।
तुय सुव्वइ आसीस दिति जिणेसरसूरि मुणिवइ । उयहि जाम जलु रहइ गयणि जाम मह दिणेसरु ।
ताम पयासिउ सूरि धंमु जुगपवरु जिणेसरु ।। विहि संघु स नंदउ दिणगदिगु, वीर तित्थु थिरु होउ धर । पूजन्ति मणोरह सयल तहि, कव्वट्ठ पढंति नारि नर ॥ ८ ॥
[इति षट पदम्]
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