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________________ Avvv~ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह अज्जवि जु देवु लोइ ट्ठियउ, संघ मणछिउ देइ फलु । जिणदत्त सूरि पहु सुरगुरूवि, धम्मु पयासिउ जिण अमलु ॥३॥ अभयदाणु जिणि दिनु सयल संघह विक्कमपुरि।। किय पयट्ठ जिण उसभ भुवणि बहुविह उछबु भरि । जिणि पडिबोहउ कुमरपालु नरवय तिहुयण गिरि । पंचसत्त मुणि नेमि जेणि वारिउ देसण करि । उज्जेणी वक्कु जोइणि तणउं, जिणि पडिबोहउ झाण बलि। जिणदत्त सूरि पहु सुरगुरवि, हुयउ न होइ सइ इत्थु कलि ॥४॥ बारह पंचुत्तरइ धवल वैसाख छट्टि दिणि । सइ जिणदत्त मुणिंद ठविउ जिनचंदु पट्टि तहि (? जिणि) ।। विक्कमपुरि जिण वीर भुवणि वादिय मणु मोहइ । गणहरु जेम सुहम सामि भवियण दिण बोहइ । जिणचन्द सूरि जसु चन्दु सम, अज्जवि उज्जोयइउ गयणु जिणि । .............................................. ।।५।। बारह सइ तेवीस समइ कत्तिय सिय तेरसि । बबेरेपुरि ठविउ सूरि जिणपत्ति महा रिसि ॥ मंतुं दिनु जयदेव सूरि सूरहि सुपवित्तिण, अत्थाणु पहुविरायह तणउ जिणि रंजवि जयपत्तु लियउ। खरहरय सहि जगि पयडिउ, जुग पहाणु पहुविप्पयउ ।। ६ ।। बारअठ्ठहतरइ माह सिय छट्टि भणिज्जइ । जिणेसर सूरि पइसरइ संघु सयलु विविह सज्जइ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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