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________________ । अहम् ॥ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ॥ श्री गुरु गुण पटपद ॥ जिणवल्लह-पमुहाणं, सुगुरूणं जो पढेइ वर-कप्पं । मंगल-दीवंमि कए, सो पावइ मंगलं विमलं ॥१॥ इग्यारह सइ सट्ठसत्त समहिय संवछरि । ___ आसाढइ सिय छट्टि चित्तकौटंमि पवरपुरि । महावीर जिणभवणिट्ठिय संठिउ जिणवल्लह । जिणि उज्जोयउ चंदु गछ पंडिय जिणवलह । गुरु तक्क कन्व नाडय पमुह, विज्जा वास पसिद्ध धर । परिहरवि आवि विहि पयड़ कइ, पुहवि पसंसिजइ सुपरपरि ॥१॥ इग्यारह गुणहत्तरइ किसण वैसाख छट्टि दिणि। चित्तउड़ह वर नयरि संघु मिलियउ आणंदिणि । वद्धमाण जिणभवणिभयउ तहि घणउ महोछवु ।। देवभहि संठियउ सूरि जिणदत्त सुनिछवु । आयस पुणति सूरि भिछ, जिम झाण नाण संतुट्ठ मण । जिणदत्त सूरि पहु सुर गुरवि, थुणवि न सक्कउं तुम्ह गुण ॥ २ ॥ अज्जवि जसु जस पसरु महि छहखंड धरत्तिहि । ... अज्जवि जसु गुण नियरू थुणहि पंडिय बहु भत्तिहि । अज्जवि सुमरिज्जंतु विग्धत्तु अवहरइ पवित्तण । नाम ग्रहणि कुणंति जसु अज्जवि भवियण दिण । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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