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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह २००-२२७) देखें उपरोक्त पृ० १६७ और राससार पृ० ४५ ।
८३ समयहर्ष ( २५४) ८४ सहजकीर्ति ( १७५-७६ ) देखें यु० जिनचन्द्रसूरि पृ० २०६ ८५ सारमूर्ति ( २३) .८६ साधुकीति(६२-६७-४०४)देखें यु० जिनचन्द्रसूरि पृ० १६२ ८७ सुखरत्न (१४६) ८८ सुमतिकाल्लोल (६४)
पृ० १०५ ८६ सुमतिवलभ (१९८) १० सुमतिविजय (१७७ )
६१ सुमति विमल ( २५०) . १२ सुमतिरंग (४१०-४२१ ) देखें यु० जिनचन्द्रसूरि पृ० ३१५ .... ६३ विवेकसिद्धि (४२२)
६४ सोमकुंजर (४८) आप उ० जयसागरजीके विद्वान शिष्य थे। विज्ञप्तित्रिवेणी पृ० ६१ से ६३) में आपके रचित कई अलंकारिक पद्य भी पाये जाते हैं।
६५ सोममूर्ति ( ३८७ ) जिनपतिसूरि शि० जिनेश्वरसूरिजीके आप सुशिष्य थे और उ० अभयतिलकजीके आप सतीर्थ थे। देखें जैनयुग वर्ष २ पृ० १६४ ।
६६ हर्षकुल (५७) महो०-पुण्यसागरजीके शिष्य थे, उल्लेख यु० जिनचन्द्रसूरि पृ० १६०
१७ हर्षचन्द ( २४६) रूपहर्ष शि०, आपके रचित अन्य एक गहुँली भी संग्रहमें है। .
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