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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
५४ महिमहर्ष ( ४३२ ) बेगड़ शाखा, अच्छे कवि थे ।
५५ महिमाहंस ( ३०० )
५६ माइदास ( ३१८ )
५७ माणक ( २६४ )
५८ माधव ( ३३६ )
५६ मेरुनन्दन ( ३६६ ) जिनोदयसूरि आपके दीक्षागुरु थे । आपके रचित अजितशान्तिस्तवनादि उपलब्ध है ।
६० रयणशाह ( ७ )
६१ रत्ननिधान (१०३ - १२३) देखें यु० जिनचन्द्रसूरि पृ० १०४ ६२ राजकरण ( ३०३ - ३०४ )
६३ राजलछी ( ३४० )
६४ राजलाभ ( २५५-२५७ ) देखें यु० जिनचंद्रसूरि पृ० १७३ ६५ राजसमुद्र ( १३२ ) आचार्य पदके अनन्तर नाम जिनराजसूरि, देखें इसी ग्रन्थमें राससार पृ० २२
६६ राजसुन्दर ( ३२० ) प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि आप ( जिनसिंहपट्टे ) पिप्पलक जिनचन्द्रसूरिजीके शिष्य थे ।
६७ राजसोम ( १४६ ) कविवर समयसुन्दरजीके शि० हर्षनन्दन शि० जयकीर्त्तिजीके शिष्य थे । आपके रचित श्रावकाराधना ( भाषा) २ कल्पसूत्र ( १४ स्वप्न ) व्याख्यान ( सं० १७०६ श्रा० सु० ६ जेसलमेर, जिनसागरसूरि शि० जसवीर पठ०) ३ इरियाविही मिथ्यादुष्कृतस्त० बाला० ४ फारसी स्त० आदि उपलब्ध है ।
६८ राजहंस ( २३१ )
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