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________________ १०६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ५४ महिमहर्ष ( ४३२ ) बेगड़ शाखा, अच्छे कवि थे । ५५ महिमाहंस ( ३०० ) ५६ माइदास ( ३१८ ) ५७ माणक ( २६४ ) ५८ माधव ( ३३६ ) ५६ मेरुनन्दन ( ३६६ ) जिनोदयसूरि आपके दीक्षागुरु थे । आपके रचित अजितशान्तिस्तवनादि उपलब्ध है । ६० रयणशाह ( ७ ) ६१ रत्ननिधान (१०३ - १२३) देखें यु० जिनचन्द्रसूरि पृ० १०४ ६२ राजकरण ( ३०३ - ३०४ ) ६३ राजलछी ( ३४० ) ६४ राजलाभ ( २५५-२५७ ) देखें यु० जिनचंद्रसूरि पृ० १७३ ६५ राजसमुद्र ( १३२ ) आचार्य पदके अनन्तर नाम जिनराजसूरि, देखें इसी ग्रन्थमें राससार पृ० २२ ६६ राजसुन्दर ( ३२० ) प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि आप ( जिनसिंहपट्टे ) पिप्पलक जिनचन्द्रसूरिजीके शिष्य थे । ६७ राजसोम ( १४६ ) कविवर समयसुन्दरजीके शि० हर्षनन्दन शि० जयकीर्त्तिजीके शिष्य थे । आपके रचित श्रावकाराधना ( भाषा) २ कल्पसूत्र ( १४ स्वप्न ) व्याख्यान ( सं० १७०६ श्रा० सु० ६ जेसलमेर, जिनसागरसूरि शि० जसवीर पठ०) ३ इरियाविही मिथ्यादुष्कृतस्त० बाला० ४ फारसी स्त० आदि उपलब्ध है । ६८ राजहंस ( २३१ ) Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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