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________________ संक्षिप्त कविपरिचय १०५ ४४ नेमिचंद भंडारी ( ३७२ ) पष्टीशतक कर्त्ता, जिनपति शिष्य जिनेश्वरसूरि के पिता । ४५ पुण्यसागर (५) देखें यु० जिनचंद्रसूरि पृ० १८८ । ४६ पुण्य ( ३३७ ) यथासम्भव आप समयसुन्दरजीके परम्परामें ( कविवर विनयचंद्र के प्रगुरु ) होंगे और पूरा नाम (पुण्यचंद शि० ) पुण्यविलास होगा । ४७ पदमराज ( १७ ) देखें यु० जिनचंद्रसूरि पृ० १६० । ४८ पद्ममन्दिर (५६ ) आपके रचित १ प्रवचनसारोद्धार बाला० ( १५६३ ) उपलब्ध है । ४६ पहराज ( ४० ) ५० पल्ह (३६८ ) इनका नामोल्लेख चर्चरी टीका ( अपभ्रंश काव्यत्रयी पृ० १२ ) में आता है, आप दिगम्बर भक्त और ( जिन दत्तसूरिके) अभिनवप्रबुद्ध श्राद्ध थे, लिखा है । ५१ भत्तर ( ६ ) । ५२ भक्तिलाभ (५४) उ० जयसागरजी के शि० रत्नचंद्रजीके आप सुशिष्य थे, आपके रचित १ कल्पांतरवाच्य २ लघुजातक कारिकाटीका (१५७१ विक्रमपुर ) ३ जीरावला पार्श्वस्त ० संस्कृत स्तोत्र प० ३, ४ सीमंधरस्तवनादि उपलब्ध हैं। आपके शि० चारुचंद्रजी कृत १ उत्तम कुमारचरित्र २ रतिसार चौ० ३ हरिबल चौ० ( १५८१ आ० सु० ३ ) ४ नंदनमणियारसन्धि ( १५८७ ) आदि उपलब्ध हैं आपकी परम्परामें श्रीबलभोपाध्याय हो गये हैं, देखें यु० चरित्र पृ० २०३ | ५३ महिमा समुद्र ( ४३१ - ३२) बेगड़शाखा Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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