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________________ संक्षिप्त कविपरिचय १०३ १७ कीर्तिवर्द्धन ( ३३३ ) जिनहर्ष ( आद्यपक्षी ) सूरिजीके शिष्य दयारत्न ( कापर हेडारास कर्त्ता १६६५ ) के आप शिष्य थे, आपके रचित सदयवछसावलिंगा चौ० (१६६७ विजयदशमी ) प्राप्त है । .y १८ कुशलधीर ( २०७ ) देखें युगप्रधान जिनचंद्रसूरि पृ० १६४ । ,, १६६। १६ कुशललाभ ( ११७ ),, २० खइपति ( १३८ ) २१ खेमहंस ( २१७ ) क्षेमकीर्ति ( शाखाके आदि पुरुष ) जीके शिष्य थे, आपकी रचित मेघदूत दीपिका उपलब्ध है। जयसोम, गुणविनय आपहीकी परम्परामें थे । २२ खेमहर्ष (२४२-४३) आपके रचित कई स्तवन हमारे संग्रहमें हैं। "" "" २३ गुणविजय ( ३६४ ) आपके रचित १ विजयप्रशस्ति काव्यके अन्तिम ५ सर्गमूल और समग्रग्रन्थपर टीका २ कल्प | कल्पलता टीका ३ सातसौ बीस जिन स्त० आदि उपलब्ध हैं। २४ गुणविनय ( ६३-६६-१००-१२५-१७२-२३०) देखें' यु० जिनचंद्रसूरि पृ० २०० । २५ गुणसेन (१३६) सागरचंद्रसूरि शाखाके वा० सुखनिधानजी के आप शिष्य थे आपके रचित कई स्तवन हमारे संग्रहमें हैं । आपके यशोलाभ नामक शिष्य थे जो अच्छे कवि थे । २६ चारित्रनंदन ( २६७ )। २७ चारित्रसिंह ( २२५ ) देखें यु० जिनचंद्रसूरि पृ० १६७ ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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