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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ५ कनक ( १३४ ) आप सम्भवतः उ० क्षेमराजजीके शिष्य थे, आपका पूरा नाम 'कनकतिलक' होगा।
६ कल्याणकमल (१००) देखें :-युगप्रधान जिनचन्दसृरि पृ० १७२।
७ कल्याणचंद्र (५२) कीर्तिरत्नसूरिजीके शिष्य थे। सं० १५१७ में सूरिजीसे आपने आचारांगकी वाचना ली जिसकी प्रति जे० भ० में (नं० २) अब भी विद्यमान हैं।
८ कल्याणहर्ष (२४७) ६ कविदास (१७४) १० कवीयण (२६३-२६२)।
११ कनकसिंह ( २४३) शिवनिधान शिष्य, देखें यु० जि० सू० पृ० ३१३।
१२ कमलरत्न ( २३३) देखें यु० जि० सू० पृ० ३१५ ।
१३ कमलहर्ष ( २४० ) श्रीजिनराजसूरि शिष्य मानविजयजी के आप शिष्य थे, आपके रचित :-१ पांडवरास (१७२८ आ० व० २ र० मेड़ता) २ धना चौ० ( १७२५ आ० सु०६ सोजत) ३ अंजना चौ० (१७३३ भा० सु० २) ४ रात्रि भोजन चौ०, (१७५० मि० लूणकरणसर) ५ आदिनाथ चौढ़ा० ६ दशवैकालिक सझायें इत्यादि उपलब्ध हैं।
१४ कनकधर्म (२६६ )। १५ कनकसोम (१०-१४४ ) देखें यु० जिनचंद्रसूरि पृ० १६४ १६ करमसी (२४७)
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