SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काव्योंका ऐतिहासिक सार जिनचंद्रसूरिजीके पट्टधर जिनउदय - जिनहेम - जिनसिद्धसूरिके पट्टधर जिनचंद्रसूरि अभी विद्यमान हैं। विशेष ज्ञातव्य देखें :( खरतरगच्छपट्टावलीसंग्रह ) । रंगविजयशाखा जिनरंगसूरि ६१ ( पृ० २३१-३३ ) श्रीजिनराजसूरि (द्वि० ) के आप शिष्य थे । श्रीमाली, सिन्धूड़ गोत्रीय सांकरसिंहकी भार्या सिन्दूरदेकी कुक्षिसे आपका जन्म हुआ था। सं० १६७८ फाल्गुन कृष्णा ७ को जैसलमेर में आपने दीक्षा ली थी, दीक्षितावस्थाका नाम रंगविजय रखा गया । श्रीजिनराजसूरिजी ने आपको उपाध्याय पद दिया था ज्ञानकुशलकृत गीत और जिनराजसूरि गीत नं० ६ में आपको युवराज पदसे संबोधन किया गया है जोकि महत्वका है । कमलरत्नके गीतानुसार पातिशाह ( शाहजहां ! ) ने आपकी परीक्षाकी थी और ७ सूबोंमें ( इनका ) वचन प्रमाण करनेका फरमान दिया था । उसके पाटवीपुत्र दारासको सुलताणने आपको 'युगप्रधान ' पदका निसाण दिया था । सिन्धुड़ नेमीदास - पंचायणने प्रवेशोत्सव ( शाही निसाणके साथ ! ) बड़े समारोहसे किया, सर्व महाजन संघको नारकी प्रभावना दी गई । सं० १७१० मालपुरेमें महोत्सवके साथ 'युगप्रधान ' पद-स्थापन हुआ था । आपके रचित अनेकों स्तवनादि उपलब्ध हैं । उनमें से कई दिल्ली से ( १ छोटा से ग्रन्थमें ) यतिरामपालजीने प्रकाशित किये हैं । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy