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________________ १२ __ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह आपके रचित कृतियोंमें १-सौभाग्यपंचमी चौ०,२-नवतत्वबाला (श्राविका कनकादेवीके लिये रचित श्रीपूजजी सं० नं० ४११), ३-बहुत्तरी आदि मुख्य हैं। आपके लि० एक प्रति अजीमगंज भंडारमें है। __ जिनरंगसूरिजीके पट्टधर आचार्योंकी नामावलीका क्रम इस प्रकार है :-जिनरंगसूरि-जिनचंद्रसूरि-जिनविमलसूरि-जिनललितसूरि-जिनअक्षयसूरि-जिनचंद्रसूरि-जिननन्दिवर्द्धनसूरि-जिनजयशेखरसूरि-जिनकल्याणसूरि-जिनचंद्रसूरिजीके पट्टधर जिनरत्नसूरि सं०. १६६२ बै० व० १५ को लखनऊमें स्वर्ग सिधारे । इस शाखाकी गद्दी लखनऊमें है। मंडोवरा शाखा जिनमहेन्द्रसूरि (पृ ३०२ से ३०४ ) शाह रुघनाथकी पत्नी सुन्दरा देवीकी कुक्षिसे आपका जन्म हुआ था, श्रीजिनहर्षसूरिजीके आप पट्टधर थे। गीतमें कवि राजकरणने पूज्यश्रीके मरुदेश पधारने पर जो हर्ष हुआ और प्रवशोत्सवकी भक्ति की गई, उसका मुन्दर चित्र अंकित किया है। गहुंली नं० १में उदयपुर नरेशने आपको वहां पधारनेके लिये विनती स्वरूप परवाना भेजने और मेड़ते, अम्बेरगढ़,बीकानेर जैसलमेर संघकी भी विज्ञप्तिये जानेका सूचित किया है । एवं कविने अपनी ओरसे एक बार जोधपुर पधारनेकी विनती की है । __ आपके चरित्रके विषयमें विशेष विचार फिर कभी करेंगे। आपके पट्टधर जिनमुक्तिसूरिजीके पट्टधर जिनचंद्रसूरिजी अभी जयपुर में विह मान हैं। उनके पट्टधर युवराज धरणेन्द्रसूरि विचरते हैं। ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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