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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
उपरोक्त ( वर्णन वाले ) रासकी रचना सुमतिवल्लभने ( सुमतिसमुद्र शिष्य के साथ ) सं १७२० श्रावण शुक्ला १५ को की। आचार्य श्री के रचित वीशी एवं स्तवनादि उपलब्ध है ।
जिनधर्मसूरि
( पृ० ३३५-३६ )
आप भणशाली गोत्रीय ( रिणमल्ल ) की पत्नी मृगादेके पुत्र थे । पद स्थापनाका उल्लेख ऊपर आही चका है । ज्ञानहर्ष के गीतानुसार आप बीकानेर पधारे, उस समय गिरधरशाहने प्रवेशोत्सव बड़े समारोहसे किया था । विशेष ज्ञातव्य देखें: - खरतरगच्छपट्टावली संग्रह |
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जिनचन्द्रसूरि ( पृ० ३३७ )
आप जिनधर्मसूरिजीके पट्टधर थे । बुहरा वंशीय सांवलशाह आपके पिता और साहिबदे आपकी माता थी । विशेष ज्ञातव्य देखेंखरतरगच्छपट्टावलीसंग्रह |
जिनयुक्ति सूरि पट्टधर जिनचन्द्रसूरि
( पृ० ३३७-३८ )
उपरोक्त जिनचन्द्रसूरिके ( पश्चात् पट्टावलीके अनुसार ) पट्टधर जिनविजयसूरिके पट्टधर जिनकीर्तिसूरिके पट्टधर जिनयुक्तिसूरिजी हुए, उनके पट्टधर आप थे। रीहड़ गोत्रीय शा० भागचन्दकी भार्या यशोदाकी कुक्षिसे आप अवतरित हुए। बीलाड़े चतुर्मासके समय कवि आलमने यह गीत रचा था । गीतमें प्रवेशोत्सव के समयकी भक्तिका संक्षिप्त वर्णन है ।
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