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________________ काव्योंका ऐतिहासिक सार अमरसी शाह, संघवी कचरमल्ल, परीख अखा, बाछड़ा देवकण, शाह गुणराजके पुत्र रायचन्द गुलालचन्द, इस प्रकार राजनगरका प्रशंसनीय संघ था और धर्मकृत्य करनेमें खंभातके भण्डशाली बंधुका पुत्र ऋषभदास भी उल्लेखनीय था । हर्षनन्दनके गीतानुसार मुकरबखान ( नबाब ) भी आपको सन्मान देता था। इस प्रकार आचार्य श्रीका परिवार उदयवन्त था, गीतार्थ शिष्योंको आचार्यश्रीने यथायोग्य वाचक उपाध्यायादि पद प्रदान किये थे और अपने पदपर स्वहस्तसे अहमदाबादमें जिनधर्मसूरिजीको (प्रथम पछेवड़ी ओढ़ाकर) स्थापन किया । उस समय भणशाली बधूकी भार्या विमलादे, भणशाली सधुआकी पत्नी सहिजलदे (जिसने पूर्व भी शत्रुजय संघ निकाला और बहुतसे धर्मकृत्य किये थे) और श्रा० देवकीने पदमहोत्सव बड़े समारोहसे किया। __ पद स्थापनाके अनन्तर जिनसागरसूरिके रोगोत्पति होनेके कारण आपने बैशाख शुक्ला ३ को शिष्यादिको गच्छकी शिखामण दे, गच्छ भार छोड़ा । बैशाख सुदी ८ को अनशन उच्चारण किया। उस समय आपके पास उपाध्याय राजसोम, राजसार, सुमतिगणि, दयाकुशल वाचक, धर्ममंदिर, समयनिधान, ज्ञानधर्म, सुमतिबल्लभ आदि थे। सं०१७१६ जेष्ट कृष्णा३शुक्रवारको आपस्वर्ग सिधारे और हाथीशाहने अग्नि संस्कारादि अन्त-क्रिया धूमसे की। इसके पश्चात् संघने एकत्र होकर गायें, पाड़े, बकरीये आदि जीवोंकी २००) रुपये खर्चा कर रक्षा की और शान्ति जिनालयमें देववन्दन कर शोकका परित्याग किया। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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