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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पदाधिकारी) थे।* उनमेंसे मुख्य श्रावकोंके धर्मकृत्य इस प्रकार है :
करमसी शाह संवत्सरीको महम्मदी (मुद्रा ) देते और उनके पुत्र लालचन्द प्रत्येक वर्ष संवत्सरीको संघमें श्रीफलोंकी प्रभावना किया करते थे। लालचन्दकी विद्यमान माता धनादेने पूठियेके उपर के खण्डकी पीटणीको समराइ ( जीर्णोद्धारित की) और उसकी भार्या कपूरदेने जो कि उग्रसेनकी माता थी, धर्मकार्यों में प्रचुर द्रव्य व्यय किया।
शाह शान्तिदासने भ्राता कपूरचन्दके साथ आचार्यश्रीको स्वर्णके वेलिये दिये थे, एवं २॥ हजार रुपयोंका खर्च कर सुयश प्राप्त किया था। उनकी माता मानबाइने उपाश्रयके १ खण्डकी पीटणी करा दी थी और प्रत्येक वर्ष आषाढ़ चतुर्मासीके पोषधोपवासी श्रावकोंको पोषण करनेका वचन दिया था। __ शाहमनजीके दीप्तमान कुटुम्बमें शाह उदयकरण, हाथी, जेठमल और सोमजी मुख्य थे । उनमें हाथीशाहने तोरायबन्दी-छोड़ का विरुद प्राप्त किया था। उनके सुपुत्र पनजी भी सुयशके पात्र थे। मूलजी, संघजी पुत्र वीरजी एवं परीख सोनपाल सूरजीने २४ पाक्षिकोंको भोजन कराया था । आचार्य श्रीकी आज्ञामें परीख चन्द्रमाण, लालू,
*समयसुन्दरजी कृत अष्टकमें आपके आज्ञानुयायिओंकी सूची मैं इनके अतिरिक्त भटनेर, मेवाड़, जोधपुर, नागौर, बीरमपुर, साचोर, किरहोर, सिद्धपुर, महाजन, रिणी, सांगानेर, मालपुर, सरसा, धींगोटक, भरुच, राधनपुर वाराणपर आदिके संघोंके भी नाम भी आते हैं।
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