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________________ ७६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह है। उनके पट्टधर जिनवर्द्धनसूरिजीसे यह शाखा भिन्न हुई थी, उनके पट्टधर आचार्योंका नामानुक्रम इस प्रकार है : जिनवर्द्धन सूरि--जिनचन्द्रसूरि-जिन सागर सुरि-(जिन्होंने ८४ प्रतिष्ठायें की थीं और उनका धुंभ अहमदाबादमें प्रसिद्ध है)। जिन सुन्दर सूरि-जिनहर्षसूरि-जिनचन्द्र सूरि-जिनशील सूरि-जिनकीर्तिसूरि-जिनसिंहसूरि-जिनचन्द्रसूरि (सं०१६६६ विद्यमान ) तकका राजसुन्दरने उल्लेख किया है हमारे संग्रह की पट्टावली आदिसे इस शाखाके पञ्चानुवर्ती पट्टधरोंका अनुक्रम यह ज्ञात होता है:-जिनरत्नसूरि-जिनवद्धमानसूरि-जिनधर्म सूरि-जिनचन्द्र सूरि-( अपर नाम शिवचन्द्र सूरि ) इनमें जिनरत्न सूरिके पीछेके नाम प्रस्तुत शिवचन्द्र सूरि रासमें भी पाये जाते हैं। अब रासके अनुसार जिन (शिव) चन्द्र सूरिजीका विशेष परिचय नीचे दिया जाता है : जिन शिवचन्द्रसूरि ४ . (पृ० ३२१). मरुधर देशके भिन्नमाल नगरमें अजीतसिंह भूपतिके राज्यमें ओसवाल रांका गोत्रीय शाह पदमसी रहते थे। उनकी धर्मपत्नीका नाम पदमा था। उसके शुभ मुहूर्तमें एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और मंधर स्वामीसे सूरि मंत्र संशोधन कराया। श्रीमंधर स्वामीने आचार्योंके नामकी आदिमें जिन विशेषण लगानेकी सूचना दी, इसीसे पट्टधर आचार्यो ने नाम के आगे जिन विशेषण दिया जाता है। xगृहे १३ साधुपर्याय १३ गच्छ नायक १८ इस प्रकार कुल ४४ घर्ष का आयुष्य पाया। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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