SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काव्योंका ऐतिहासिक सार दीक्षा दी । दीक्षित होनेके अनन्तर भोजकुमार गुरुश्रीसे विद्याभ्यास करते हुए संयम मार्ग में विशेष रूपसे प्रवृत हुए । ___ इधर जोधपुरमें राठौर राजा गंगराज राज्य करते थे, वहां काजहड़ गोत्रीय गांगावत राजसिंह, सत्ता, पत्ता, नेतागर आदि निवास करते थे । सत्ताके पुत्र दुल्हण और सहजपाल थे, सहजपाल के पुत्र मानसिंह, पृथ्वीराज, सुरताण थे। जिनकी माताका नाम कस्तूरदे था। सुरताणकी भार्या लीलादेकी कुक्षिसे जेत, प्रताप और चांपसिंह तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे। उपरोक्त कुटुम्बने विचारकर गंग नरेशसे ( नेतागरने ) प्रार्थना की, कि हम लोगोंको गुरु महाराजके महोत्सव करनेके लिए आज्ञा प्रदान करें । नृपवर्यका आदेश पाकर देश-विदेशमें चारों तरफ आमन्त्रण पत्रिका भेजी गई, बहुत जगहका संघ एकत्र हुआ और खूब उत्सवपूर्वक सं० १५८२ फाल्गुन शु० ४ श्रीजिनमेरुसूरिके पट्टपर श्री जिनगुणप्रभ सूरिजीको स्थापित किया गया । उन्हें बड़ गच्छीय श्रीपुण्यप्रभ सूरिने सूरि मंत्र दिया संघने गंगरायको सन्मानित किया और राजाने भी संघ और पूज्यश्रीको बहुमान दिया। ___ सं० १५८५ में सूरिवर्याने संघके साथ तीर्थाधिराज सिद्धाचल जीकी यात्रा की, जोधपुरमें बहुतसे भव्योंको प्रतिबोध दिया । इस प्रकार क्रमशः १२ चतुर्मास होनेके पश्चात जेशलमेरके श्रावक देवपाल, सदारंग, जीया, वस्ता, रायमल्ल, श्रीरंग, छुटा, भोजा आदि संघने एकत्र होकर गुरु दर्शनकी उत्कंठासे पांच प्रधान पुरुषों के साथ वीनति-पत्र भेजा, उनके विशेष आग्रहसे सूरिजी विहारकर जैसलमेर Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy