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काव्योंका ऐतिहासिक सार
उ० जयमाणिक्य
(पृ० ३१०) यति हरखचन्दजीके शिष्य जीवणदासजीके आप सुशिष्य थे। १६ वीं शताब्दीके पूर्वार्धमें आपकी अच्छी ख्याति थो। सेवक स्वरूपचन्दने छंदमें सं० १८२५ वैसाखके शुक्ला ६ को आपने (!) जिनचैत्यकी प्रतिष्ठा करवाई, उसका उल्लेख किया है। आपके सुन्दरदास, वस्तपाल, दोपचन्द अरजुनादि कई शिष्य थे, आपका बाल्यावस्थाका नाम 'घमडा' था । आप कीर्तिरत्न सूरि शाखाके थे। ___ हमारे संग्रहमें आपके (सं० १८५५ मिगसर वदी ३ बीकानेरमें) जीवराशि क्षमापनाको टीप है । अतः यथा संभव इसके कुछ दिनों बाद ही बोकानेरमें आपका स्वर्गवास हुआ होगा। आपको दिये हुए आदेशपत्र और अन्य यतियोंके दिये हुए अनेकों पत्र हमारे संग्रहमें हैं।
श्रीमद् ज्ञानसार जी
(पृ०४३३) जैगलेवास वास्तव्य सांड ज्ञातीय उदैचन्दजीकी पत्नी जीवणदेने सं० १८०१ में आपको जन्म दिया था, सं० १८१२ बीकानेरमें श्री जिनलाभ सूरिजीके शिष्य रायचन्द ( रत्नराज ) जीके आप शिष्य हुए । बीकानेर नरेश सूरतसिंहजी आपके परम भक्त थे । राजा रत्नसिंहजी भी आपको बड़ी श्रद्धाकी दृष्टिसे देखते थे। आपके सदासुखजी नामक सुशिष्य थे।
आप मस्तयोगी, उत्तमकवि और राजमान्य महापुरुष थे। आपके रचित समस्त ग्रन्थोंकी हमने नकलें कर ली है जिसे विस्तृत ऐतिहासिक जीवन चरित्रके साथ यथावकाश प्रकाशित करेंगे ।
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