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________________ खरतरगच्छ आर्यामण्डल लावण्य सिद्धी (पृ० २१०) वीकराज शाहकी पत्नी गुजरदेकी आप पुत्री थीं। पहुतणी रत्नसिद्धिकी आप पट्टधर थीं, साध्वाचारको सुचारुरूपसे पालन करती हुई यु० जिनचन्द्रसूरिजीके आदेशसे आप बीकानेर पधारी और वहीं अनशन आराधना कर सं० १६६२ में स्वर्ग सिधारी । वहां आपके स्मृतिमें धुंभ ( स्तूप) बनाया गया। हेमसिद्धि साध्वीने यह गुणगर्भित गीत बनाया है । सोमसिद्धि (पृ० २१२) नाहर गोत्रीय नरपालकी पत्नी सिंघादेकी आप पुत्री थी, आपका जन्म नाम 'संगारी' था, यौवनावस्था आनेपर पिताश्रीने बोथरा जेठाशाहके पुत्र राजसीसे आपका पाणिग्रहण कर दिया । १८ वर्षकी अवस्थामें धर्म-उपदेशके श्रवण करते हुए आपको वैराग्य उत्पन्न हुआ और श्वास-श्वसुरसे अनुमति ले दीक्षा ग्रहण की। दीक्षित होनेपर आपका नाम 'सोमसिद्धि' रखा गया, आपने आर्या लावन्यसिद्धिके समीप सूत्र-सिद्धान्तोंका अध्ययन किया था और उनने आपको अपने पदपर स्थापित की थी। शत्रुजय आदि तीर्थो की आपने यात्रा की थी। श्रावण कृष्णा १४ वृहस्पतिवारको अनशनकर आप स्वर्ग Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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