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________________ इस प्रशस्ति में, गुर्वावली और परवर्ती रचित साहित्य में पार्श्वनाथ और महावीर के दो मंदिरों की जिनवल्लभसूरि द्वारा प्रतिष्ठा का उल्लेख प्राप्त होता है। महावीर चैत्य की प्रशस्ति यही है। पार्श्वनाथ मंदिर भी नष्ट-भ्रष्ट हो गया था। इस मंदिर का एक शिलाखंड भी चित्तौड़ की गंभीरा नदी में बने पुल के खम्भे में लगाया हुआ था और आज यह चित्तौड़ के संग्रहालय में सुरक्षित है। इस विधि चैत्य की प्रशस्ति चित्रकाव्यमय है। उत्कीर्ण प्रशस्ति का मूलपाठ निम्नलिखित to ॐ १. (निर्वाणार्थी विधत्ते) वरद सुरुचिरावस्थितस्थानगामिन्सर्बो (पी)२. (ह स्तवं ते) निहतवृजिन हे मानवेन्द्रादिनम्य (1) संसार-क्लेशदाह (स्त्व)३. (यि) च विनयिनां, नश्यति सावकानां देव ध्यायामि चित्ते तदहमृषि४. (वर) त्वां सदा वच्मि वाचा (I)-१॥ नन्दन्ति प्रोल्लसन्तः सततमपि हठ (क्षि)५. (प्तचि) त्तोत्थमलं प्रेक्ष्य त्वां पावनश्रीभवनशमितसंमोहरोहत्कुत६. (र्काः।) भूत्यै भक्तव्याप्तपार्था समसमुदितयोनिभ्रामे मोहवार्डों ७. (स्वा) मिन्पोतस्त्वमुद्यत्कुनयजलयुजि स्याः सदा विश्ववं (ब) धो (I) २ ॥ ८. नवनं पार्थाय जिनवल्लभमुनिविरचितमिह इति नामांकं च (क्रे ) ९. (स) त्सौभाग्यनिधे भवद्गुणकथां सख्या मिथः प्रस्तुतामुक्षिप्तैकत१०. संभ्रमरसादाकर्णयन्त्याः क्षणात् । गंडाभौगमलंकरोति विश (दं) ११. (स्वे) दांवु (बु) सेकादिव प्रोद्गच्छन्पुलकच्छलेन सुतनौः शुगारकन्दांकु१२. (रः) |॥ १॥ पुरस्तादाकर्णप्रततधनुषं प्रेक्ष्य मृगयुं चलत्तारां चा (रु प्रि)१३. (य) सहचरी पाशपतितां (ताम्)। भयप्रेमाकूताकुल-तरल-चक्षुर्मुहु१४. (र) हो कुरङ्ग सर्वागं जिगमिषति तिष्ठासति पुनः॥ २ ॥ सद्वृत्त (र)१५. (म्यप) दया मत्तमातङ्गगामिनी । दोषालकमुखी तन्वी तथा१६. (पि) रतये नृणां (णाम्) ॥ ३॥ क्षीरनीरधिकल्लोल-लोललोचनया१७. नया । क्षा (ल) यित्वेव लोकानां स्थैर्य धैर्यं च नीयते ॥ ८॥ जिनपालोध्याय आदि कई कविपुंगवों ने जिनवल्लभसूरि को शिशुपालवध महाकाव्यकार माघ कवि से भी अधिक उट्भट विद्वान् बतलाया है। जो इनके प्राप्त काव्यों के आधार पर सिद्ध भी होता है। श्रृंगारशतक भी इन्हीं की रचना है जो श्रृंगाररस से ओत-प्रोत है। आचार्य अभयदेव के पास उपसम्पदा ग्रहण करने के पश्चात् घोर शृंगारमय रचना करना किंचित् भी सम्भव नहीं, अतः यह कह सकते हैं कि चैत्यवास में रहते हुए ही उक्त रचना की होगी। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (३५) _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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