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________________ आओ।" आपकी आज्ञानुसार वह पत्र एक मुख्य ब्राह्मण के हाथ में सौंप दिया गया। उसने अपनी ज्ञानप्त दृष्टि से श्लोक के अभिप्राय को जान कर सोचा-"हम तो केवल एक-एक शास्त्र के विद्वान् हैं और ये सब विद्या के भण्डार हैं। इनके साथ हम शास्त्रार्थ कैसे कर सकेंगे?" ऐसा विचार कर उस विवेकशील ब्राह्मण ने सबको समझा कर शान्त किया। २२. किसी समय धारा नगरी के राजा श्री नरवर्म देव की राजमान्य पण्डित सभा की प्रसिद्धि सुनकर दक्षिण दिशा से दो पण्डित उत्सुक होकर उनका पाण्डित्य देखने की इच्छा से आये और राजकीय पण्डित सभा में "कण्ठे कुठारः कमठे ठकारः" की समस्या रख कर सभासद स्थानीय पण्डितों से उसकी पूर्ति करने को कहा। सब राज पण्डितों ने अपनी विद्वत्ता और प्रतिभा के अनुसार समस्या पूर्ति की, किन्तु उससे आगन्तुक विद्वानों को सन्तोष नहीं हुआ। उस अवसर पर किसी ने राजा से निवेदन किया-"राजन् ! इनका मन राजकीय पण्डितों द्वारा की गई समस्या पूर्ति से संतुष्ट हुआ हो ऐसा प्रतीत नहीं होता।" राजा ने उनसे पूछा-"क्या कोई और भी ऐसा विद्वान् है जिसके द्वारा समस्या पूर्ति कराई जाकर इन दोनों को प्रसन्न किया जाय।" तब कोई विवेकी पुरुष बोला"देव! चित्तौड़ में जैन श्वेताम्बर साधु जिनवल्लभ गणि सब विद्याओं में पारंगत हैं-ऐसा सुना जाता है।" राजा ने तत्काल शीघ्रगामी दो ऊँट सवारों को पत्र देकर साधारण श्रावक के पास भेजा। उसमें लिखा था-"साधारण! आप अपने गुरु जी से इस समस्या की सुन्दरातिसुन्दर पूर्ति करा के शीघ्र भिजवावें।" यह पत्र साधारण के पास सायं काल में प्रतिक्रमण के समय पहुँचा। साधारण ने वह राज पत्र गुरु जी को सुनाया। गुरु जी ने प्रतिक्रमण क्रिया को समाप्त करके समस्या पूर्ण करके लिख दी रे रे नृपाः! श्रीनरवर्मभूप-प्रसादनाय क्रियतां नताङ्गैः। कण्ठे कुठारः कमठे ठकारश्चके यदश्वोग्रखुराग्रघातैः॥ [रे रे राजाओं! जिसने अपने घोड़ों के तीक्ष्ण खुराग्र घात से भूतल के नीचे रहे हुए कच्छप पर ठपकार किया है उस नरवर्म राजा को प्रसन्न करने के वास्ते तुम नत मस्तक होकर अपने कण्ठ के पास कुहाड़ा धारण करो।] __इस समस्या-पूर्ति को लेकर प्रयाण करने वाले वे दोनों राजकीय पुरुष रातों-रात चल कर शीघ्रातिशीघ्र धारा नगरी को आ पहुँचे और राज सभा में आकर वह पूर्ति पण्डितों के सामने धर दी। उसको देख उन आगन्तुक पण्डितों की प्रसन्नता की सीमा न रही। वे बोले-"इस सभा में तो इस प्रकार उद्भट कविता करने वाला ऐसा कवि नहीं है। यह पूर्ति तो इनके अतिरिक्त किसी अन्य कवि द्वारा की हुई है।" राजा ने वस्त्र-द्रव्यादि से उनका सत्कार करके उनको विदा किया। २३. तदनन्तर गणि महाराज भी चित्तौड़ से विहार करके क्रमशः विचरण करते हुए धारा नगरी में आये। किसी ने राजा को सूचना दी, "राजन् ! समस्या पूर्ति करने वाले वे श्वेताम्बर साधु महाराज आजकल यहाँ धारा नगरी में ही आये हुए हैं।" राजा का मन तो महाराज की प्रतिभा से पहले ही संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (३१) _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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