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________________ [दौर्गत / दरिद्रता का नाश करने वाली वस्तु क्या है? विष्णु-ब्रह्मा-शिव का वाचक वर्ण क्या है? पथिक लोग अपने किस श्रम को आदर / सुखपूर्वक दूर करते हैं? चन्द्र पूछता है कि देवमन्दिरों में शोभा बढ़ाने वाली वस्तु क्या है? और जगत् में चतुरता तथा न्याय आदि गुणों से विश्व विख्यात होकर कौन प्रकाशमान है? । इन पाँचों प्रश्नों का उत्तर “सोमध्वज" इस प्रकार एक ही पद में सूरि जी ने दिया। साहित्यकारों ने इसका नाम “द्विर्व्यस्त समस्त जाति" रखा है, इसका अर्थ यह कि दो बार सन्धि विश्लेष करके तीसरी बार समस्त वाक्य को पढ़ना, अर्थात्-प्रथम संधि विश्लेष में "सा-ऊम्-अध्वजः" से प्रथम के ३ और द्वितीय संधि विश्लेष में "सोमः ध्वजः" से चौथे एवं समस्त वाक्य "सोमध्वजः" से पांचवें प्रश्न का उत्तर निम्नलिखित प्रकार से मिलता है-दौर्गत-दारिद्रय का नाश करने वाली सालक्ष्मी है। ऊम् यह वर्ण ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों का वाचक है अर्थात् इस पद से तीनों ही ग्रहण किये जाते हैं। पथिक लोग अध्वज यानी मार्गजनित श्रम को बड़े चाव से दूर करना चाहते हैं। हे सोम! - चंद्र! देवताओं के मन्दिरों में शोभा बढ़ाने वाली वस्तु ध्वज अर्थात् ध्वजा है। मन्दिरों की शोभा ध्वजा से बढ़ती है। चतुराई और नीति में विश्वविख्यात् यदि कोई है तो वह आप सोमध्वज "सोमध्वज" यह उत्तर सुनकर वह तपस्वी बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सूरि जी की बहुत भक्ति की। फिर उसी भामह सेट के संघ के साथ चलते हुए गुजरात की प्रसिद्ध नगरी अणहिलपुर पाटण में पहुंचे। वहाँ नगर के बाहर मण्डपिका अर्थात् सरकारी चुंगी घर में ठहरे। उस समय वहाँ उसके आस-पास कोट नहीं था, जिससे सुरक्षा हो और शहर में सुसाधुओं का कोई भक्त श्रावक भी नहीं था, जिसके पास जाकर स्थानादि की याचना की जा सके। वहाँ विराजमान मुनि-वृन्दसह आचार्य को ग्रीष्म से आक्रान्त देखकर पण्डित जिनेश्वर ने कहा-"पूज्यपाद! बैठे रहने से कोई कार्य नहीं होता!" आचार्य ने कहा- "हे सच्छिष्य! क्या करना चाहिए?" तब पण्डित जिनेश्वर ने प्रार्थना की-"यदि आप आज्ञा दें तो सामने जो बड़ा घर दिखाई दे रहा है, वहाँ जाऊँ।" आचार्य ने उत्तर दिया-"जाओ।" गुरु का वन्दन कर वे वहाँ से चले। वह घर श्री दुर्लभराज के पुरोहित का था। उस समय पुरोहित अपने शरीर में अभ्यंग-मर्दन करा रहा था। उसके सामने जाकर आशीर्वाद दिया श्रिये कृतनतानन्दा, विशेषवृषसङ्गताः। भवन्तु तव विप्रेन्द्र!, ब्रह्म-श्रीधर-शङ्कराः॥ [हे ब्राह्मण श्रेष्ठ ! भक्तों को आनन्द देने वाले, क्रम से हंस, शेषनाग और वृषभ (बैल) पर चढ़ने वाले ब्रह्मा, विष्णु, शिव आपकी लक्ष्मी की वृद्धि करें।] इसको सुनकर पुरोहित बहुत प्रसन्न हुआ और हृदय में विचार किया कि यह साधु कोई बड़ा विचक्षण-बुद्धिमान ज्ञात होता है। उसी पुरोहित के घर में कई छात्र वेद पाठ कर रहे थे, उसे सुनकर संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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