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वर्तमान समय में दोनों समुदाय का जो साध्वी वर्ग है। उनमें से कुछ ने समय-समय पर पत्र लिखने पर भी अपना परिचय लिख कर नहीं भेजा, उनके सम्बन्ध में जो भी जानकारी मुझे प्राप्त हुई है, उसी के आधार पर लेखन किया गया है। यह सामग्री पृष्ठ ४०८ से ४२५ तक मुद्रित है।
श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि और मोहनलालजी महाराज की समुदाय का साध्वीवर्ग आज विद्यमान नहीं है, अतः उनका परिचय नहीं लिखा गया है। श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि समुदाय की विदुषी साध्वी महेन्द्रप्रभाश्रीजीडॉ० साध्वी लक्ष्यपूर्णाश्रीजी आदि विद्यमान हैं। अध्येताओं, शोधार्थियों की सुविधा के लिए इसमें चार परिशिष्ट दिए गये है:प्रथम परिशिष्ट - इसमें खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास के अन्तर्गत आए हुए आचार्यों, उपाध्यायों,
मुनिवरों, महत्तराओं, प्रवर्तिनियों एवं साध्वियों के नाम अकारानुक्रम से दिए गये हैं। इसमें उनकी शाखाओं, उपशाखाओं का उल्लेख किया गया है। (पृष्ठ ४२६ से
४६३) द्वितीय परिशिष्ट - इस इतिहास में आगत श्रावक-श्राविकाओं के विशेष नाम अकारानुक्रम से दिए गये
हैं। (पृष्ट ४६४ से ४८१) तृतीय परिशिष्ट - इस इतिहास में आए हुए राजाओं, मंत्रियों, दण्डनायकों, राज्याधिकारियों और
सत्ताधारीजनों के विशेष नामों को अनुक्रमणिका में किया गया है। (राजा, मंत्री,
राज्याधिकारी आदि का उल्लेख भी किया गया है।) (पृष्ठ ४८२ से ४८७) चतुर्थ परिशिष्ट - इस इतिहास गत ग्राम, नगर, स्थानों के विशेष नामों की सूची अकारानुक्रम से दी
गई है। (पृष्ठ ४८८ से ५०४) आभार
अन्त में, मैं अपना आभार-ज्ञापन सर्वप्रथम खरतरगच्छ के अधिनायक आचार्य श्री वर्धमानसूरि एवं आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि के प्रति समर्पित करूँगा जिनसे प्रारम्भ हुई खरतरगच्छ की दिव्य किरण ने एक हजार वर्ष तक जैन-धर्म को आलोकित किया है और इस धर्म का अभिवर्धन किया है।
प्रस्तुत इतिहास के लेखन में जिनपालोपाध्याय, सुमतिगणि, गुणविनयोपाध्याय, क्षमाकल्याणोपाध्याय आदि रचित गुर्वावलियों, पट्टावलियों, मूर्तिलेखों, ग्रंथ-प्रशस्तियों, लेखन-प्रशस्तियों और अन्य ग्रंथों आदि से सामग्री का चयन किया गया है, अत: उन सभी पूज्य मुनिवृन्दों, मनीषियों और लेखकों के प्रति सादर प्रणति।
मेरे निवेदन पर पूज्य मुनिराज श्री जयानन्दजी महाराज, उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी महाराज, विदुषी साध्वी श्री चन्द्रप्रभाश्रीजी महाराज, विदुषी साध्वी श्री हेमप्रभाश्रीजी महाराज, विदुषी साध्वी श्री सुरंजनाश्रीजी महाराज और विदुषी साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी महाराज एवं श्री सुलक्षणाश्रीजी महाराज तथा अध्यक्ष, दादाबाड़ी श्री जिनकुशलसूरिजी, जिनचन्द्रसूरिजी ट्रस्ट, चेन्नई, श्री सुरेन्द्र कुमारजी लुणिया अध्यक्ष, कुलपाक तीर्थ आदि ट्रस्टों ने एवं व्यक्तिगत रूप से श्री पी०सी० श्रीमाल हैदराबाद एवं श्री
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स्वकथ्य
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