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साहित्य सेवा में पूर्ण हों, इस दृष्टि से इसकी मैंने प्रकाशन योजना बनाई, इस ग्रंथ का निम्नानुसार संयोजन किया गया है
खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास
(क) इसमें खरतरगच्छ संस्थापक वर्धमानसूरि से लेकर वर्तमान परम्परा में श्री पूज्य आचार्य जिनचन्द्रसूरि तक का वृत्तांत हो ।
(ख) खरतरगच्छ की १० शाखाएँ हैं
१. मधुकर शाखा
४. बेगड़ शाखा
७. भावहर्ष शाखा
१०. मण्डोवरी शाखा
(ग) चार उपशाखाएँ
१. क्षेमकीर्ति शाखा
३. सागरचन्द्रसूरि शाखा
प्रायः इन शाखाओं का इतिहास अज्ञात ही है । इसमें से प्रारम्भिक पाँच शाखाओं का अस्तित्व दो-तीन दशाब्दी पूर्व ही विलीन हो गया और शेष पाँच शाखाएँ भी कुछ दशाब्दी पूर्व विद्यमान थीं, वे भी विलीन हो गईं। इन शाखाओं का जो भी इतिहास ज्ञात हो, उसका लेखन हो ।
२. रुद्रपल्लीय शाखा
५. पिप्पलक शाखा
८. आचार्य शाखा
१. सुखसागरजी का समुदाय
२. जिनकृपाचन्द्रसूरिजी का समुदाय
३. मोहनलालजी महाराज का समुदाय
इन उप-शाखाओं के यतिगण भी प्रायः समाप्त हो गए हैं। इन उप-शाखाओं का भी जो कुछ स्फुट वर्णन प्राप्त हो, उस सामग्री का लेखन हो ।
३. लघु खरतर शाखा
६. आद्यपक्षीय शाखा
९. जिनरंगसूरि शाखा
(घ) संविग्न परम्परा • शिथिलाचार से क्षुब्ध होकर कई सम्माननीय यतिगणों ने क्रियोद्धार कर, संविग्न पक्षीय बन कर शुद्ध साध्वाचार का पालन करते रहे। वर्तमान समय में संविग्न पक्षीय के तीन समुदाय हैं
२. जिनभद्रसूरि शाखा ४. कीर्तिरत्नसूरि शाखा
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जिनकृपाचन्द्रसूरिजी के समुदाय के कोई साधु-साध्वी नहीं रहे और मोहनलालजी महाराज उदारदर्शी और समभावी आचार्य थे, इनका समुदाय दोनों गच्छों में विभक्त था । अतः खरतरगच्छ समुदाय के साधुओं का ही वर्णन किया जाए।
(ङ) प्राचीन साध्वीवर्ग का इतिहास प्राचीन साध्वीवर्ग का कोई इतिहास प्राप्त नहीं होता
स्वकथ्य
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