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जी ढढ्ढा के साथ सगाई कर दी गई। लक्ष्मी के जीवन में विवाह बंधन का योग नहीं था, योग था संयम ग्रहण करने का। विक्रम संवत् १९६४ माघ सुदि ५ को ही माता-पुत्री दोनों ने ही शिवश्रीर्जी महाराज के पास संयम ग्रहण कर लिया। माता जेठीबाई का नाम जयवंतश्री तथा पुत्री लक्ष्मी का नाम प्रमोदश्री रखा गया। प्रमोदश्री को शिक्षा-दीक्षा देकर योग्यतम बनाने का सारा श्रेय विमलश्रीजी को जाता है।
आप आगमों की ज्ञाता थीं, ओजस्वी प्रवचनकार थीं, व्याख्यान पटु थीं और तपस्वीनी भी थीं। ७४ वर्ष की अवस्था में आपने मासक्षमण जैसी महान् तपस्या की। अन्तिम अवस्था में अस्वस्थता के कारण बाड़मेर में स्थानापन्न हो गई थीं। विक्रम संवत् २०३९ पौष वदि दशमी को बाड़मेर में ही आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी शिष्याओं में श्री प्रकाशश्री, श्री विजयेन्द्रश्री और डॉ० विद्युत्प्रभाश्री आदि प्रमुख हैं। (क) श्री प्रकाशश्री-वि०सं० १९७२ आश्विन कृष्णा ११ को खैरवा (पाली) में इनका जन्म हुआ। जन्मनाम हंसकुमारी था। समदड़िया मूथा हीराचंद जी श्रीमाल आपके पिता थे और माता का नाम बनीबाई था। वि०सं० १९८४ मार्गसिर सुदि १३ को खैरवा में ही श्री प्रमोदश्री जी से आपने दीक्षा ग्रहण की। आपका दीक्षा नाम प्रकाशश्री रखा गया। स्व० श्री शिवश्री जी म० के मण्डल में आप इस समय सबसे वयोवृद्ध साध्वी हैं। (ख) श्री विजयेन्द्रश्री-इनका जन्म वि०सं० १९८४ मार्गशीर्ष सुदि ११ को प्रतापगढ़ में हुआ था। इनका जन्मनाम कमला कुमारी था। झवासा गोत्रीय श्री मोतीलाल जी और झमकू बाई आपके पितामाता थे। वि०सं० २००९ माघ सुदि ११ को उदयपुर में आपने प्रमोदश्री जी से दीक्षा ग्रहण कर विजयेन्द्र श्री नाम प्राप्त किया। १२ साध्वियों के साथ आप विचरण कर रही हैं। (ग) श्री रत्नमालाश्री एवं डॉ० विद्युत्प्रभाश्री-रत्नमालाश्री का जन्म वि०सं० १९९८ ज्येष्ठ सुदि को मोकलसर में हुआ था। पारसमल जी लुंकड़ की आप धर्मपत्नी थीं। आपका जन्म नाम रोहिणी देवी था। वि०सं० २०३० आषाढ़ वदि ७ को अपने पुत्र मीठालाल और पुत्री विमला के साथ आपने पालीताणा में आचार्य जिनकांतिसागरसूरि जी से दीक्षा ग्रहण की और रत्नमालाश्री नाम प्राप्त किया गया। मीठालाल ही आज उपाध्याय मणिप्रभसागर जी हैं और विमला ही डॉ० विद्युत्प्रभाश्री हैं।
डॉ० विद्युत्प्रभा का जन्म वि०सं० २०२० ज्येष्ठ सुदि ६ को मोकलसर में हुआ था। आप अच्छी विदुषी, कुशल व्याख्यात्री एवं लेखिका हैं। सेठ मोतीशाह आदि कई पुस्तकें आपकी प्रकाशित हो चुकी हैं। द्रव्य-विज्ञान पर आपको डाक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त हो चुकी है।
(६) प्रवर्तिनी श्री जिनश्री
प्रमोदश्री जी के पश्चात् प्रवर्तिनी पद पर वल्लभश्री जी की शिष्या श्री जिनश्री जी विभूषित हुईं। आपका जन्म वि०सं० १९५७ आश्विन सुदि ८ को तिवरी में हुआ था। आपके पिता का नाम लाधूराम
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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